Sunday, December 12, 2010

मेरी अहमियत तो सिर्फ उनके प्यार में छुपी है

एक सच दबाये बैठा हूँ
खुश हूँ की कुछ तो छुपाये बैठा हूँ
सुना है उन्हें दुसरो के गम में ख़ुशी मिलती है
उनकी ख़ुशी की खातिर खुद को रुलाये बैठा हूँ
कभी तो नशीब-ये-दीदार होगा उनका
इस इंतजार में पलके बिछाए बैठा हूँ
मेरी अहमियत तो सिर्फ उनके प्यार में छुपी है
अपनी नजरो में उनको बसाये बैठा हूँ

Thursday, November 11, 2010

काश न्याय की मन्दिर का दिया सबके लिए समान जलता ...


आज फिर देश के सबसे बड़े न्यायालय से एक ऐसा फैसला आया है जिसे कम से कम मै तो नही ही पचा पा रहा..जाने क्यूँ और कैसे १४ साल की मासूम को मौत के दरवाजे तक पंहुचने वाला ६ महीने की सजा कट कर ही बाहर आ गया..सजा भी तो मिली थी सिर्फ १८ महीने...वाह रे अदालत और वाह रे तेरा न्याय...
मुझे वह दिन नही भूलता जब पूरी मीडिया के सामने हंसते हुए इस ने कहा था आप लोग चाहें मुझ पर जो भी कमेन्ट करें,,मेरी हंसी ऐसे ही बरकरार रहेगी...दरअसल अब उस हंसी का राज समझ आता है...........क्यूँ न कोई आरोपी या दोषी हंसे..यूँ न मजाक उड़ाए..जब फैसले ऐसे ही आने है तो चेहरे पर मुस्कान रहनी ही चाहिए...और माफ़ कीजियेगा अगर कल कोई देश का दूसरा ऐसे ओहदे वाला इन्सान किसी भोली भली लडकी को शिकार बनाएगा तो......क्यूंकि वह भी हंसेगा और ६ महीने में छुट जायेगा.........क्यूंकि वो जानते है की ऐसे देश में सत्ता और राजनीती का खेल कैसा होता है..........वो मजा लेगा ...किसी भी मासूम को धर दबोचेगा...क्यूंकि कानून को तो वो अपनी मुठी में समझता है............तब क्या फैसला सुनाएगी ये न्याय की मन्दिर.............
सिर्फ मामला यह अकेला नही है.....अभी गैंग रेप करने वालों को एक अदालत सिर्फ ४ साल की सजा सुनाई है क्यूंकि उनका सम्बन्ध रसूख वालों से है,,,तो बात saaf है ..मेरी पंहुच दूर तक है तो मै कुछ भी करूं मेरा बाल भी बाका नही होगा..........फिर तो सही है ...हर अत्याचारी हंसेगा एउर अत्याचार करेगा,,,,,,,जो झेलेगा वह न्याय की मन्दिर जायेगा,,,रसूख वाला अपना जुगाड़ भिदायेगा और न्याय की मन्दिर में एक और कमजोर हर जायेगा.................
तो क्या अब कोई रास्ता नही बचा...ऐसा नही है तमाम रस्ते हैं...पर उसके लिए न्याय की मन्दिर में बैठे पुजारियों...सत्ता की बागडोर सम्हाले समाज के नुमैन्दों और सबसे बढकर हर एक इन्सान को खुद के अस्तर पर इमानदार होना होगा.....इस तरह के अत्याचारियों को कठोर से कठोर सजा देनी होगी...इन्हें कतई बख्सा जाना जुर्म को बढने का न्योता देना है....मेरा न्याय की मन्दिर से विश्वास अभी उठानही है...वैसे भी जीत सच्चाई की ही होनी है....एक दिन तो अत्यचरिओन का विनाश होकर रहेगा ..........

Monday, November 1, 2010

इन आँखों को खुशिया दे ..मौला ..ये प्यार के काबिल हैं




एहसासों का समन्दर सुख सा गया है
उसी आँखों में अब सिर्फ वीरानिया हैं,,
एक टक देखता हूँ उन ख़ूबसूरत आँखों को,,
सहसा यकी नही होता की ये वही आँखे हैं॥
कितना प्यार बस्ता था इसमें,,
कितनी गहराई थी इसमें ,,
एक बार जो डूबता
चाह कर भी निकल नही पाता
वो इशारे ही इशारे में हर बात कह जाने की इसकी आदत,
काजल की लकीरों में कहानियों को समेटे पलकें
मोहबत की दास्ताँ प्रकट करती वो गिरती झुकती पलकें
मदिरा सा नशा देने वाली वो सुरमयी नशीली सम्वेदनाएँ
कभी कभी मोतियों को समेटे आंसुओं का खजाना,,
सच कितना कुछ था इन आँखों में
सहसा यकी नही होता है
इशारे बचे,,न सम्वेदनाएँ बची
न काजल है उसमे,,न नशा है
हाँ आँखे जिन्दा जरुर है ,,पर मरने से भी बदतर॥
नही या रब इन आँखों को बरकत दे,,
इनसे ही ये दुनिया है,,
फिर इन ख़ूबसूरत आँखों में उदासी
बिलकुल नही फब्ती
देना है तो मेरी आँखों को उदासी दे
वैसे भी वो अक्सर कहती थी, ''तेरी आँखे मुझसे ख़ूबसूरत नही,''
और ये सच था
भगवान क्या तुम्हे भी वो दिन याद नही
जब झूट में अक्सर वो अपनी आँखों में कुछ पड़ने का बहाना कर
मुझसे घंटों अपनी आँखों में फुकने को कहती,,
मै भी प्यार से उसकी आँखों में अपने प्यार को भरता रहता
घंटो बाद वो कैसे चिढाते भागती थी ,अरे कुछ नही पड़ा मै तो मस्ती कर रही थी
भगवान क्या आप भी भूल गये
जब उदासी में उसकी आँखों में आये आंसू,,
और उसके बाद उसकी आँखे
कैसे भूल सकता हूँ
कितनी लाल हो जाती थीं
सुर्ख गुलाब की तरह ,,पर कष्टकारी
नही न तब मुझसे सहन होता था न अब
माना मुझसे बिछड़ने के बाद उस कुत्ते ने उसे बहुत दर्द दिया है
माना की उस प्यारी मासूम को मेरे पीछे बहुत कष्ट सहने पड़े हैं॥
पर वो आँखे इस चीज की काबिल नही हैं,,
वो प्यार की काबिल है,,
अरे वो ख्वाब के काबिल है
उन झील सी आँखों की झमझम आवाज लौटा दो...
उन आँखों की समुन्द्र सी गहराई लौटा दो
लौटा दो उसके काजल
लौटा तो उनमे नशा
हाँ -हाँ वो सिर्फ और सिर्फ प्यार के काबिल हैं
और हाँ उन आँखों को बता दो ,,
प्रेमी आ गया है,,
फिर उन्हें प्यार करने...
शायद सुनते ही उन aankhon में प्यार उम्द पड़े
याद रखना यही मेरे प्यार की जीत होगी................................................




अपनी इन निर्लज आँखों में थोड़ी तो ह्या रहने दो..





kise dosh दिया जाये...इस हमाम में जब सभी नंगे हैं...नेताओं की करतूत तो कलि पहले ही थी अब बड़े सैन्य अफसर के भी दमन रोजाना मैले हो रहे है...नौकरशाही तो पहले ही भ्रष्टता की सीमा लाँघ चूकि है...इन सबके कर्मो रहम से जो पीछे छुट रहा है...जो पिसा जा रहा है वो है जनता ................................................
तजा उदाहरन ही लें..आदर्श सोसाइटी का...शहीदों की परिओरों को देने के लिए बनाये गये इन फ्लैटों में बड़े अफसर ,,नेता,,,उनके रिश्तेदार अपने पहुंच के बल पर जाने कैसे जगह पा गये हैं............इनमे अपने पूर्व थलसेना प्रमुख भी शामिल हैं.............नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल भी शामिल हैं............
अब दीपक कपूर कह रहे हैं की,''मुझे इस बात का अंदाजा भी नही था की ये फ्लैट कारगिल शहीदों की पत्नियों के लिए है....इस प्रकरण से मै काफी व्यथित और सोसाइटी से अपनी सदस्यता खत्म करने को कहा ह...कपूर साहब इतने भोले मत बनिए...चव्हाण भी ये बात खे फिर और आप जैसे लोग तो बात पचती नही,झ्हुत बोलने की एक हद होती है...आपको मालूम नही था यह तो हो ही नही सकता..किसी कीमत पर नही॥
सीधी सी बात है इस मामले में सभी फ्लैट लेने वालों को सब कुछ सही सही मालूम था...इनमे से कोई भी दूध पिता नही है की वो जन ही नही पाया हो की आखिर ये फ्लैट कैसा और किसके नाम से था...ये सब ठीक वैसे ही था की बहती गंगा में सबने हाथ धिओने की कोशिश की है अब जब कई के हाथ उंदर छुपी किसी जन्तु के चपेट में आया तो चिलाना चालू है ....पहले सिफारिश हुयी अब सफैयों का दौर चालू है.....
सीधी सी बात है आप नेता है तो देश में कुछ भी कर सकते है क्यूंकि आपके सामने किसी की नही चलने वाली और जिसकी चलने वाली है वह आपकी ही तरह है..यानि लूटो और खूब लूटो...जी चाहे उतना लूटो...और जब कोई देख ले तो पलट जाओ..ये देश बहुत भुलक्कड है..दयावान है जल्दी ही माफ़ कर देता है....अगर नही भूल पा रहा तो नया विवाद पैदा कर दो लोगों को नये नये विवादों में मजा आता है और अपने को सुर्ख्सा भी यही से मिलता है..अगर फिर भी लोगों का ध्यान उसी बात पे लगा है तो ऐसा करो पूरी मीडिया को खरीद लो...तुम राजनेता हो कुछ भी खरीद सकते हो..वैसे भी मीडिया आज थोक की भाव बिकने को तैयार है...उसे पैसा चाहिए और नेताओं को आराम से ऐश ...तो पिसती रहे बेचारी जनता,,,उसका मौका तो ५ साल बाद आएगा न...५ साल बाद भी वह कुछ नही उखड सकेगी..क्यूंकि उसे किसी को तो चुनना ही होगा और वो जिसे चुनेगी सभी अपने रिश्तेदार या अपने तरह के ही होंगे..तो बड्स अपना तो मजा है ...............
बिलकुल मजा है..पर एक बात भूल रहे है जनाब की देश के अंदर एक ज्वाला धधक रही है...लोगो की शांति के पीछे एक बहुत बड़ी क्रांति का उदय हो रहा है और इसके लिए कुछ मेरे जैसे युवा मोर्चा सम्हाल रहे है आने वाले वक़्त में इन्हें इनकी करतूतों का जवाब लिया जायेगा...हिसाब लिया जायेगा...कर लेने दो ऐश अब अंत समय निकट है...मै तो इनका नत देख रहा हूँ पता नही आप क्यों नही देख पा रहे...आगे आप को भी दिख रहा है और आपके अंदर कुछ देश के लिए भी करने की चाहत है तो इस धधकती ज्वाला को और मजबूत कीजिय ताकि इसकी आंच से वो सभी दरिदे जल उठे.................






Friday, October 8, 2010

मेरे दिल में ख़ूबसूरत सी एक हया है......

बोलने की जरुरत क्या है,,
जब इशारों में सब कुछ बयाँ है,,

करने को तो हम भी कर गुजरते वो सब,
पर मेरे दिल में एक खुबसूरत सी हया है ...

जिनके दिल नफरतो से भरे हैं उनसे कहो,
प्यार अपनाये,,सच उनके लिए ये सबसे अच्छी दवा है।

खाक बिगाड़ पाओगे तुम उसका,,
तुम्हे नही मालूम,,उस पर रब की दया है,,,

चलो अब चल के सुलह कर लो॥
तुम एक हो तभी ये दुनिया है,,,




Thursday, October 7, 2010

देखिये श्रीमान मुझे गाली दीजिये पर मेरे नेताओ को कुछ न कहियेगा

जरा धीरे बोलिए कोई सुन लेगा...क्या सोचेगा वह .....
अरे सोचने दीजिये मै भला क्यूँ धीरे बोलूं.....
अब बोलने पर भी पाबंदी लगायेंगे क्या आप
देखिये जो जी में आएगा मै बोलूँगा
जैसे मन करेगा मै बोलूँगा,,,
किसी को बुरा लगता है तो लगे,,
उन नेताओं को तो आप कभी टोकने नही जाते जो जब तब गला फाड़ते रहते है
देखिये श्रीमान मुझे गाली दे दीजिये पर मेरे नेताओं को कुछ न कहियेगा
और इस तरह का गलत दोषारोपण तो बिलकुल नही चलेगा,,
गलत,,पगला गए हैं क्या आप इसमें गलत क्या है,,,
वही जो आप कह रहे है की वो तेज तेज चिलाते है...
बेचारे नेता इसी डर से तो संसद नही जाते,,
जाते भी हैं तो चुपचाप कहीं कोने में सोते रहते है,,,
मिडिया से जितना हो सके दूर रहने की कोशिश करते है,,,
बेचारे चिलाना छोडकर अब कुर्सी और मेज चलाने लगे हैं
और आप हैं की अभी तक उनके चिलाने को लेकर अड़े है,,,
अरे छोडिये जी मैंने देखा है कैसे बेचारे अपनी राजनीती चमकने के लिए भूख हड़ताल करते है
कोई कोई तो मौन व्रत रखता है...
क्या ऐसे में कोई चिला सकता है,,,
चिल्लाना न पड़े इसी डर से तो बेचारे अपना सारा पैसा विदेशों में रखते है,,
बात कर रहे हैं आप,,
आप ही बताइए जितने के बाद कितनी बार आते हैं वे आपसे मिलने,,
पांचवे साल है न,यानि अगले चुनाव के लिए क्यूँ ताकि बीच में उन्हें आपके साथ चिलाना न पड़े
अब दिमाग चला की कुछ और बताएं॥
नही भैया रहने दो मान गया ...
गलती हो गयी ,,,
चलिए कम से कम एक नालायक तो माना की अपने नेता महान है,,,,

Wednesday, October 6, 2010

शायद बहुत दिनों बाद भगवान को धरती पर सच्चे प्यार का दीदार हुआ था





सिर्फ इशारे करते रहोगे या कहोगे भी कुछ ,,
कब से इंतजार कर रही हूँ की अब बोलेगे-अब बोलोगे..पर तुम हो की बोलते ही नही,,
भला ये नाराजगी किस बात के लिए है,,
अपनों से भी कोई रूठता है भला,,,
और हाँ अगर रूठता भी है तो इत्ती देर के लिए तो कभी नही,,
क्यूँ मुझे बवजह रुलाने पर तुले हो,,
जानते हो न की अगर मै रोना शुरू कर दूंगी तो जल्दी चुप नही होने वाली,,
अच्छा तो फिर मुझे मानाने मत आना,
और हाँ आज तुम्हारा चोकलेट ,तुम्हारी मीठी बातों से मै नही पिघलने वाली,,
अरे मेरी भी कोई इजत है की नही,,
हर बार मै आसानी से मान जाती हूँ
हर बार केवल तुम्ही रुठते हो,,
मुझे तो इस घर में कभी रूठने का मौका ही नही मिलता,,
आखिर मेरे भी कुछ नखरे हैं,,,
मुझे भी उन नखरों को दिखाने का हक है,,
मेरीसहेलियाँ रोजाना अपने पति के सामने नखरे परोसती है,,'
रोजाना उनसे घंटों रूठी रहती हैं,,
तब पति देव को मनाने के लिए आना पड़ता है,,
यहाँ तो उल्टा ही है,,,
हमेशा तुम्ही रूठे रहते हो,,,
भारत में शायद यह पहला घर है जहाँ पत्नी से ज्यादे पति के नखरे हैं,,,,
अब मुझसे ये सब नही हो सकेगा...बस...
उसके इतना कहते ही मेरे चेहरे पे हल्की मुस्कान बिखर गयी
और मै उससे हर गया,,
पर इस हार में भी मेरी जीत थी,,,
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया,,,
और उसके आँखों से टपकते मोतियों को पि गया
अचानक सामने आकाश में रौशनी बिखर गयी
शायद बहुत दिनों बाद भगवान को धरती पर सच्चे प्यार का दीदार हुआ था

Monday, October 4, 2010

हाँ मशीन भी दिलफेंक होते हैं और यह गुनाह नही

वह एक मशीन है.उसे प्यार हो जाता है..लेकिन उसे प्यार उसी लड़की से हो जाता है जो उसके मालिक की महबूबा है.मालिक यानि जिसने उस मशीन को बनाया है...जब मालिक को पता चलता है की उसका बनाया मशीन उसी की महबूबा को चाहने लगा है तो उसे अपने मशीन से जलन होने लगती है...हालाँकि उसकी महबूबा उस मशीन से प्यार नही करती..वह उसे समझती है की वह एक औरत है और उससे प्रेम का हक सिर्फ पुरुष को है...मशीन उससे प्यार करे यह प्रकृति के खिलाफ है...लडकी मशीन से आग्रह करती है की वह उसे भूल जाये साथ में वह यह भी कहती है की तुम्हारे लिए भूलना आसान है क्यूंकि तुम एक मशीन हो...मशीन कोई प्रतिकार नही करता अपने प्यार का सम्मान करते हुए सर लटकाए वहां से लौट जाता है....
उसकी सादगी,उसका त्याग बहुत कुछ सोचने को मजबूर करता है...क्या कोई इतनी मोहब्बत करता है आज के जमाने में....या अगर माना कोई भूल से प्यार कर भी बैठे तो क्या महबूबा के यह कहने पर की तुम मुझे भूल जाओ तुम ऐसा कर सकते हो,बिना प्रतिकार,बिना कुछ कहे कोई प्रेमी लौट सकता है...मुझे तो नही लगता...तो क्या अब प्यार भी हमे मशीनों से सीखनी होगी..पर इसे बनाने वाले तो हम खुद हैं ,,,फिर...कहीं तो कुछ गडबड है ,,.......
मशीन एक रोबोट है...उससे कई गलतियाँ ऐसी होती हैं जो मानवजाति के लिए विनाशकारी हैं..हालाँकि यह एक लालची वैज्ञानिक की करामत है...अदालत आदेश देती है की इस रोबोट को तोड़ दिया जाये,,फ़िलहाल इसकी जरुरत नही...रोबोट का मालिक उसके सामने है,,बगल में ही उसकी महबूबा भी खड़ी है...कई और लोग हैं...सबकी आँखे नम हैं....अंतिम विदाई लेते हुए रोबोट अपने मालिक से कहता है की माफ़ करना तुम मेरे मालिक हो और मै तुमसे ही गद्दारी कर बैठा,,मैंने नियम तोडा है....मालिक बोलता है नही..गलती तुम्हारी नही है....यह नियम तोडना आखिर तुमने हम मनुष्यों से ही तो सिखा है........
रोबोट के ज्ञान के परिक्षण के लिए उसे सबके सामने पेश किया जाता है...सभी उससे तरह तरह का सवाल करते है...एक सवाल आता है..तुम्हे क्या लगता है भगवान होता है,,,रोबोट पूछता है...भगवान मतलब क्या...
पूछने वाला कहता है मतलब जिसने हम सबको बनाया होगा....रोबोट मुस्कराकर वैज्ञानिक की तरफ इशारा करके जवाब देता है....मुझे तो इन्होने बनाया है,,,अगर ये हैं,,,,तो हाँ भगवान होता है...................
सच इस मशीन रोबोट से एक सफल मनुष्य होने के कई गुर सिख सकते हैं...या यूँ कहें की हम जितना सब कुछ मेहनत करके मशीनों में फीड के रहे हैं उसका कुछ हिस्सा खुद के पास रख लें तो कितना अच्छा हो.....
इस उम्मीद में की हमारा कल हमारे बनाये किसी मशीन से बेहतर होगा..दीजिये इजाजत ,,प्रेमी को...




Saturday, October 2, 2010

हमे तरक्की चाहिए आस्था और जमीन का बंटवारा नही




अयोध्या विवाद में फैसला आ चूका है...मेरे विचार से कोर्ट ने अपने तरफ से बहुत सोच समझ कर निर्णय दिया है फिर भी अगर आपति कोई है तो सबसे बड़े न्यायलय का दरवाजा अभी खुला है....मसला यह नही है...मसला तो इससे अलग और कहीं इससे भयावह है....
फैसले से पहले जिस तरह के हालत बनाये जा रहे थे उससे पूरे यूपी समेत देश भर में आग लगनी थी....कम से कम यूपी तो जलना ही था....हिन्दू मुस्लिम के बीच खटास तो पैदा ही होनी थी....अरे मियां ऐसा क्या हुआ, कुछ नही हुआ ...एक पथर तक नही चला ..बस यही बात नागवार गुजरी है उन नामर्दों को जो एक बार फिर आग लगाना चाहते थे ईस देश में...धू-धू कर जलते देखना चाहते थे इस देश को....९२ में ये इसी की आड़ में अपनी राजनीती चमका चुके हैं,,,आज राजनीती अवसान पे देख फिर से आग लगाना चाहते है..मुस्लिम भाइयों को बरगलाया जा रहा है की उनके साथ धोखा हुआ है,,,अन्याय हुआ है...उन्हें उनका हक मिलना चाहिए था...पर उनकी बात कोई नही सुन रहा तो उनके सिने पे सांप लोट रहा है...
ये नामर्द भूल गये हैं की ये ९२ नही है ...भारत २०१० के आगे जा रहा है....माना की ९२ में हम तथाकथित धर्म के ठेकेदारों की बहकावे में आ गये थे ,,माना की तब हमने वो किया था जो गलत था , हर लिहाज से....माना की तब हम मुर्ख बन गये थे...हमे अपने गलती का एहसास है और पछतावा भी..पर हम इतने बड़े मुर्ख भी नही है की एक ही गलती बार बार करें....
आज हम ऐसे जगह खड़े है जहाँ से हम दुनिया से टकराने का सपना देखते हैं....हमे नही अपनों से टकराना ....हमे तरक्की चाहिए,,जमीन और आस्था का बटवारा नही.....जमीन फांककर इस पेट की भूक नही मिटनी है अन्न चाहिए...आस्था भी भूखे पेट नही होती...धर्म के नाम पर हमे बाँटकर अपनी रोटियां सीकने वालों गुजारिश है की उस रोटी को अब कचा ही खाना सिख लो क्यूंकि अब तुम्हारी उस रोटी को पकाने के लिए हम आंच नही बनने वाले......t
बहुत बड़े हमारे हितैषी बनते हो न तो दो हमे रोजगार,,रोटी,कपड़ा,मकान..पानी,बिजली,,स्वाश्थ्य,,,,क्यूँ चुप क्यों हो इसलिए की अब हम लड़ नही रहे या इसलिए की हमने अब अपने हक की बात करनी शुरू कर दी है....दो हमे भी सत्ता में हिस्सेदारी...क्या दे पाओगे,,,अरे तुम क्या दोगे हम खुद वहां भी अपने लिए रास्ता बना लेंगे तुम अब बस तमाशा देखो..देखो हमारी तरक्की,,हमरा मिलन...एक एक करके तुम सभी को हम किनारे लगायेंगे...नया नेतृत्व लायेंगे....देश की रफ्तार और हमारे विकास से डर लग रहा है तुहे जो तुम हमारी धारा मोड़ना चाहते हो चेत जाओ...शायद तुम्हे जनता की हुंकार का अंदाजा नही......पर जल्द हो जायेगा ..समेट लो अपनी थोथी मानसिकता...वरना पछताना पड़ेगा,,,,साथ बने रहना चाहते हो तो बात करो अमन की,तरक्की की,भाईचारे की,,,न की बटवारे की....
और अंत में....
खाली करो सिंघासन की अब जनता आती है,,,,,

Wednesday, September 29, 2010

..एक ख़ूबसूरत उजाला सामने है...चिड़ियाएँ रोजाना की तरह चहचहा रही हैं..अंकल रोजाना की तरह दूध लेने जा रहे हैं...वो छोटी गुडिया दादी के साथ आज भी गली में


सबह के पांच बज चुके हैं। अभी तक सोया नही....एक अजीब सी उलझन है मन में..रह-रह कर मन बेचैन हो रहा है..पूरी रात इसी सोच में गुजरी है की आज क्या फैसला आएगा...फैसले के बाद क्या होगा..कहीं कुछ गलत तो न होगा....रात के २ बजे हैं मै उठ के पानी पिता हूँ और रूम की बत्ती जलाता हूँ......रूम में चारो तरफ उजाला हो गया है पर भीतर मेरे अँधेरे ने घर कर लिया है....उजाले में भी कुछ धुंधलका सा दीखता है.....खुद से ही डरने लगा हूँ..खिड़की से बाहर झांकता हूँ...अजीब अजीब से प्रतिबिम्ब दिखाई देते है...पर्दा गिरा देता हूँ....अभी कुछ देर पहले मै हिम्मत की बात कर रहा था..एक कविता भी लिखी कुछ वैसे ही...पर चंद घंटो बाद ही मै इतना डरपोक हो गया,,,कैसे नही जानता..पर आँखों में फैली दहशत इस बातके इशारे के लिए काफी है की मै बहुत डरा हूँ....अचानक रूम में खडखडाहट होती है....डरता हूँ ....नजर घुमाता हूँ ...दूर उस कोने वो चुहिया फिर आई है...मेरे कल के अख़बार पर बैठ गयी है और कुतरना चालू है....देखता हूँ उसे और बरबस हंस पड़ता हूँ...बेचैनी में हंसी देर तक चेहरे पर नही बनी रहती....चुहिया को रोजाना भगा देता था आज उस पर प्यार आ रहा है या ये कहिये की तरस ...देखता हूँ वह अख़बार पर बने बाबरी ढांचे की तस्वीर को कुतर रही है.....अचानक फिर नजर जाती है बाबरी कुतर चूकि है और दूसरे पेज पर छपा रामजन्मभूमि की तस्वीर दिखने लगती है...मै सोचता हूँ चुहिया क्या फैसला सुना रही है....फिर बेचैन निगाहे खिड़की से बाहर देखती हैं..गली में कुत्तों का शोर आज कुछ ज्यादा है..या हो सकता है की आज मुझे हर कुछ थोडा अलग सा लग रहा हो..खैर अचानक चुहिया पर फिर नजर जाती है राम भी कुतरे जा चुके हैं....................अब वहां सिर्फ एक शुन्य बचा है...किसी का कोई अस्तित्वा नही दिख रहा....अचानक चुहिया ओझल हो गयी है....मेरी चिंता बढ़ गयी है...तो क्या यह है फैसला ...सच राम,अल्लाह के बाद तो एक बड़ा शुन्य नजर आ रहा है...तो क्या ऐसा शुन्य वाकई पैदा होने जा रहा है....दो बजे से अब तक यही सब सोच रहा हूँ...जाने क्या होगा...बाहर देखता हूँ ..एक ख़ूबसूरत उजाला सामने है...चिड़ियाएँ रोजाना की तरह चहचहा रही हैं..अंकल रोजाना की तरह दूध लेने जा रहे हैं...वो छोटी गुडिया दादी के साथ आज भी अपने uसी अंदाज में गुनगुनाते भाग दौड़ कर रही है...मेरे सामने वाली लडकी जिसे रोजाना ८ के बाद देख पता हूँ आज ५ बजे ही देख लिया आज भी वैसे ही खूबसूरत लग रही है और फूल तोड़ रही है शायद वो पूजा भी करती है आज पता चल गया....मेरा अख़बार वाला भी उसी अंदाज में पेपर फेक गया और एक हल्की मुस्कान बिखेर गया....मेरे बाजू में रहने वाली आंटी की झाड़ू की आवाज़ पहले सी ही है.....

कुछ तो नही बदला ...सब कुछ तो पुराने दिनों की तरह है...किसी के दिल मरे कोई दहशत नही है...सभी अपने काम में मशगुल हैं.....माँ का भी फोन आ गया कैसे हो डर तो नही लग रहा ..पता है नही दरोगे अरे तुम मेरे बहादुर बेटे हो...क्या कहता की तेरा ये वीर सपूत पूरी रात चिंता और भी में सोया नही....


सच अब लग रहा है की झूट का डर पाले बैठा था मैं...क्यूंकि बाहर तो ऐसा कुछ भी नही,,,...


आज ऑफिस भी तो जाना है...माहौल भी मस्त है..कुछ समय भी अपने पास है तो क्यूँ न कुछ देर मै भी सो लूँ,,,,चलिए अगर आप लोग सो लिए हैं तो निकलिए सडकों पर रोजाना की तरह एक बेहतर दिन आपके स्वागत में खड़ा है,,,,यूँ ही प्यार बांटते रहिये.....अमन बांटते रहिये,,,,,

शायद ऐसे ही पूरी होगी खूबसूरत भविष्य की कल्पना......





सड़कों पे दूर तक सन्नाटा पसरा है
सुना कोई फैसला आने वाला है,
माँ कहती है फैसले हमेशा उसी के हित में आते हैं जो सच्चा है,
वो यह भी कहती है की जहाँ सच है वहां भय नही होता ,
जब सचाई की जीत होने जा रही तो भय क्यूँ,ये सन्नाटा क्यूँ,,
तो क्या बुराई की जीत होने वाली है,,
पर राम और अल्लाह में बुरा कौन है,
माँ तो कहती है की दोनों एक हैं,,
गर दोनों एक हैं तो फिर कैसी जीत, कैसी हार
फैसला जो हो ख़ुशी-ख़ुशी होना चाहिए स्वीकार ,,
अगर ऐसा नही हो रहा,
कुछ बेचैनी है,
दिलों में अब भी डर है,
तो जरुर कुछ तो गड़बड़ है,
हमे खंगालना होगा अपने अंतर्मन को,
गहरे झांक के देखना होगा अपने दिल में ,,
हर दिल में समाधान है,,
यही लिखेगा एक सुनहरे कल की इबादत
यहीं से पूरी होगी एक खुबसूरत भविष्य की कल्पना,,,
तो छोडो डरना,
क्यूंकि सबकुछ तुम्हे ही है करना,,
तुम ही डर गये तो फिर इतिहास खुद को दुहरायेगा,,,
बरसों बाद कोसोगे खुद को,
सोचोगे काश नही डरा होता उस वक़्त
मत दो खुद को मौका पछताने का,,
रहो समाज के बीच ,
मत भागो ,सबके बीच रहकर फैसले का सम्मान करो ,,
कल तुम्हारा है.....................एक ख़ूबसूरत कल, जिसकी तुम्हे तलाश है ,,
साहस करके देखो ,दूर छितिज पर कल का वो सूरज निकल रहा है,,,डर का साया हट रहा है,,
राम और अल्लाह हम सबका भला करें...............................

Monday, September 27, 2010

प्यार है तो बोल दो

मेरा तेरे दिल पर राज करना क्या,
मेरी बात पे तेरा मुस्कुराना आखिर क्या है,
घंटों मेरा इंतजार करना,थक कर सोफे के एक किनारे लुढक जाना,
वापिस आने पर प्यार से झगड़ना और घंटों बाँहों में बाहें डाले पुरानी रोमांटिक बातें करना
क्या है,,,,हाँ बताओ क्या है,,
क्या है जो बिन बारिश मेरे न होने पे तुम्हारी आँखों से बरसने लगता है,
क्या है जो मेरे जल्दी घर लौटने की दुआएं करता है
क्या है जो दिन में हर दो घंटे पे मेरा रिंग बज उठता है और सामने तुम्हारी आवाज़ होती है
क्या है,,हाँ बताओ क्या है,
कुछ तो खास है
कुछ तो तेरे दिल के पास है
वरना कमोशियों में शोर सबको नही सुनाई पड़ते
तन्हाइयों में जीने का मकसद हर किसी को नही मिलता
सोचने का वक़्त और उस वक़्त की खूबसूरती वीरले ही मिलती है
कहीं मै तुम्हारा प्यार तो नही
कहीं मै तुम्हारे दिल का सर्कार तो नही
मै नही कहूँगा की मै कौन हूँ
फैसला तुम्हे करना है
क्या हम पहले की तरह फिर धड़क सकते हैं,,
अगर हाँ तो मेरा दरवाजा हमेशा के लिए खुला है
और जनता हूँ की तुम्हारा

Tuesday, April 6, 2010

यहाँ चाय वाला चाय नही देता


यहाँ चाय वाला चाय नही देता .किरण हंसने को मजबूर करती है .शिशिर के साथ रहने जा रहा हूँ .दो और सहकर्मी हैं जाने किस मिटटी के बने हुए । उनसे कभी बनती नही .यहाँ कोई कंटीन नही है .पर मुझे कोई फर्क नही पड़ता क्यूंकि मेरा पेट खराब है .वैसे भी मै बहुत कम खाता हूँ पर किरण का क्या होगा ?वो तो बहुत खाती है।

शिशिर भी कैंटीन को लेकर परेशान है .पर वह अडजस्ट करना जानता है या फिर मजबूरी में सिख गया है ...

ईसके बावजूद हम सभी खुश हैं क्युकी हमारे सम्पादक बहुत अछे है ..उनके साथ कम करने में खूब मजा आ रहा है ...दरअसल वे चाहते हैं कि हम कुछ हटकर और नया करें इसका मतलब यह नही है कि हम पत्रकारिता छोडकर कुछ और करने लगें बल्कि इसका मतलब है कि हम आज कि पत्रकारिता से इतर नये जमाने कि पत्रकारिता कि तरफ रुख करें । कुछ नयापन लाये ,कुछ प्रयोग करें .....

बहुत ख़ुशी मिलती है जब आप अपनी शुरुआत अपने मनपसन्द माहौल में करते हैं जहाँ कोई बंदिश नही , जहाँ हर कोई मित्र कि तरह मिले और आगे बढकेअपनाये ..जहाँ हमे अपनी बात रखने का मौका हों ..अपना मनपसन्द कम करने कि छूट हों .....

बस इसीलिए कंटीन न होने के बावजूद हम खुश है ... क्युकी कई बार माहौल ऐसा भरा पूरा होता कि पेट का खालीपन अपना अहसास नही कराता .....हाँ कभी जोरों कि भूख लगती है तो थोडा दूर निकल पड़ते है ...उसका भी अपना अलग मजा है ....

पता है शिशिर बहुत बदल; गया है ...अरे वैसा बदलना नही अब वह समझदार है और हम एक साथ है ...कई बार हमारा साथ दूसरों खलता है पर हम आई आई एम् सी वाले हर माहौल में जीना और रहना जानते है ....

हम उसी तरह पोलिटिक्स भी कर सकतें हैं जैसा सामने वाला करेगा और वैसी ही दोस्ती या फिर दुश्मनी .....

मै प्रेमी हूँ और जल्द ही यहाँ भी प्रेम के रंग बिखेर दूंगा ये मेरा दावा और वादा दोनों है ..शुरुआत कर दी है लोगों के दिलों में उतरने कि ...............................आप के दिल में तो बसा ही हूँगा उम्मीद है

मै लक्ष्मी कैमरा पर्सन शिशिर और किरण के साथ ..लखनौ से

Friday, March 19, 2010

आंखों की उदास बेचैनी और उसकी अंदरूनी आक्रामकता का धनी कलाकार: अजय देवगन













मेरे दोस्तों को मेरा जुमला अजय देवगन की कसम या अजय देवगन ने चाहा तो ,से चिढ़ मचती है। दरअसल उन्हें शिकायत है कि आमिर और शाहरूख के जमाने में भला कोई अजय जैसे छोटे नाम वाले , एक्टर को तवज्जो कैसे दे सकता है. सलमान या अक्षय की बात करता तो भी एक हद तक सही था। पर अजय यह तो हद ही हो गई।
आखिर मैं बार-बार उसका नाम लेकर साबित क्या करना चाहता हूं कि मैं औरों से हटकर सोचता हूं या फिर बात इतनी है कि मुझे बस उनकी एक नहीं सुननी है। ये सभी शिकायते हैं मेरे दोस्तों की मुझसे पर ऐसा नही है कि मैं इनकी शिकायतों पर निरूत्तर हूं पर मैं जबाब कुछ यूं देना चाहता था कि फिर इन्हे कम से मुझसे कोई शिकायत न रह जाए। इसलिए मैने अजय के बारे में मन से अध्ययन किया और अब मैं उसके बारे में कुछ लिखने में सक्षम हूं।

सुना था आंखों से हो रहे संवाद का अहसास गहरे दिल में उतरता चला जाता है। अजय की एक्टिंग देखने के बाद इस अहसास को जीता चला गया। सच ,अजय नहीं बोलते उनकी आंखे बोलती हैं। बगैर शोरगुल और मीडिया हाइप के यह महान कलाकार अपना काम करते जा रहा है और आप को यह जानकर हैरानी होगी कि खान स्टारों के इस तथाकथित दौर में सबसे अधिक काम और विश्वास का पात्र अजय है।
एक्शन डायरेक्टर वीरू देवगन का यह लाडला एक्शन के साथ ही फिल्मों में प्रवेश किया यह किसी संयोग से कम नहीं। फूल और कांटे का वह ढ़ीला-ढीला, औसत चेहरे का एक अनोखे हेयर स्टाइल का एक्शन हीरो अतिथि तुम कब जाओगे तक पहुंचते-पहुंचते फिल्म के हर विभाग (कामेडी,एक्शन,थ्रीलर,पारिवारिक,ट्रेजडी) का बेताज बदशाह बन जाएगा कम ही लोगों ने सोचा होगा। पर जिसने इसे भांप लिया था उसने इसका सही उपयोग किया और इसका फायदा अजय के साथ उसे भी मिला । इस कड़ी में सबसे पहला नाम महेश भट्ट का है।
अजय की आंखों की उदास बेचैनी, अंदरूनी आक्रामकता को महेश ने अपनी फिल्म जख्म में बखूबी उभारा है। जख्म अजय के फिल्मी करियर का सबसे अहम पड़ाव था। इस फिल्म के बाद अजय कभी पीछे मुड़कर नहीं देखे या यूं कहें कि देखने की नौबत भी नहीं आई।
हम दिल दे चुके सनम और प्यार तो होना ही था ने उनके करियर को नई उंचाई दी तो यहीं से उन्हे उनका प्यार भी मिला । काजोल तो मिली हीं देश के हर कोने का प्यार भी खूब बरसा। प्यार ने अपना असर दिखाना शुरू किया और देखते ही देखते संभावनाओं का यह सितारा अपनी रोशनी बिखेरने लगा।
यह सच है कि अजय के पास शाहरुख-आमिर सरीखी फैन-फालोइंग नहीं है। यह भी सच है कि अजय उनकी तरह ग्लैमराइज नहीं हैं। पर हम यह क्यूं भूल जाते हैं कि अजय की यही खासियत उनहें सबसे अलग और सब पर भारी बनाती है। पर अजय यहां भी अजय ही दिखते हैं जब वे इसके जवाब में सिर्फ इतना कहते हैं कि ,प्लीज मेरी किसी से तुलना मत कीजिए। मेरा कंपटीशन खुद से है। फिर सबके अलग फील्ड हैं ,अलग काम है ऐसे मे तुलना करना उचित नहीं। यह अजय की सादगी है। अजय अपनी इस सादगी के साथ खुश हैं।
बिना किसी संवाद के कयामत सरीखी एक्शन फिल्म के साथ कई फिल्मों को सिर्फ अपनी आंखों के कमाल से सफल बना देने वाला यह सादगी पसंद कलाकार अपनी जिन्दगी को भी खामोशी से आगे बढ़ाता जा रहा है जहां सिर्फ और सिर्फ उंचाइयां हैं।
जिन्दगी में आगे बढ़ते आंखों के जादूगर खामोश कलाकार को शत-शत नमन..............

Wednesday, February 24, 2010

सचिन का दोहरा शतक और खासियत की जंग















आज (२६ फरवरी )की सुबह कुछ खास थी. न जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है .हाँ ये जरुर है की और दिनों से इतर थी पर ऐसे तो हर दिन जुदा होता है .अब देखिये न सीधी सी बात है हर दिन का नाम भी तो जुदा है कभी सोमवार है तो अगला मंगलवार न की फिर सोमवार .अरे मै बुधवार कैसे भूल गया जिसे बार बार मै खास बता रहा हूँ .अक्सर होता है जो खास होता है एन वक्त पर भूल जाता है या यूँ कहूँ की वो इतना ज्यादा दिल के करीब हों जाता है की हमे गलतफहमी हों जाती है की भला वो भी भूल सकता है क्या और अक्सर हम इस गलतफहमी के शिकार हों जाते हैं .
खैर यहाँ कोई गलतफहमी नही है. कम से कम पुरे दिन बीतने के बाद शाम की इस आतिशबाजिय माहौल और कॉलेज की तमाम टेंसनों से दूर काफी दिनों बाद सुकून से बिस्तर पर लेटा सिर्फ एक ही चेहरा दिल और दिमाग में बसाये, गारंटी के साथ कह सकता हूँ की आज का दिन खास था .
खास तो भैया खास ही होता है . पर तभी तक खास होता है जब तक दिल के पास होता है . यकीन मानिये जो आपके दिल के करीब नही वो हर वस्तु या व्यक्ति किसी कीमत पर आपके लिए खास नही . अब खास कोई पास तो है नही की न चाहते हुए भी पास में रखा जाये .खास बनाने के लिए खुद को खास बनाने की जरूरत भी नही होती बस यहीं तो पंगा है .भला हम खुद को खास क्यूँ न बनाये .अजीब इन्सान हैं आप फालतू बात करते हैं . हम दूसरों को खास बनाएं पर खुद खास न बने . वाह क्या सलाह दिया है आपने. मुझे तो लग रहा है की आप जिन्दगी में कभी खुद किसी के खास हुए ही नही हैं इसीलिए कुंठा वश ऐसी बातें कर रहे हैं .अब बोलिए ऐसे सवालों पर आप क्या कहेंगे पता था आप जरुर कुछ कहना चाहेंगे पर मै कुछ नही कहूँगा दरअसल मुझे लगता है कि मै अभी तक खास नही बन पाया हूँ .
अब खास कि परिभाषा अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग हों सकती है .किसी के लिए ममता खास हों सकती हैं तो किसी के लिए सचिन . किसी के लिए बजट खास है तो किसी के लिए क्रिकेट .पर यहाँ भी एक बहस है जो मेरे क्लास कि बहस है वह यह कि किसी एक आदमी के लिए जो सच है वो दुसरे के लिए झूठ हों सकता है पर कई इसे मानने को तैयार नहीं उनके भी तर्कों में दम है भला जो गलत है ,अन्याय है वह दुसरे के लिए सच और न्याय का प्रतीक कैसे हों सकती है .जैसे यदि माओवादी लोगों को मार रहे है ये सच है तो सबका सच है और सरकार मओवादिओं के साथ जो कर रही है वो प्रशंशनीय है गलत है और सबके लिए गलत है .
ये बताने का मतलब बस इतना भर है कि इसी तरह सवाल उठ सकता है कि सचिन और ममता में खास कौन है . यहाँ भी एक ट्विस्ट है . कई बार खास होना समय और परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. एक ही समय में कई लोग एक ही साथ खास नही हों सकते यह ह्यूमन टेंडेंसी भी है .ऐसे समय में हमे उनके बीच चुनाव करना होता है .कई बार इस चुनाव में भी ऐसा प्रत्यासी जीत जाता है जिसके बाद में दगा देने पर लगता पहले वाला ही अच्छा था पर तब तक देर हों चुकी होती है और ५ साल के बाद के चुनाव कि तरह यहाँ भी इंतजार करना पड़ता है समय आने पर गलती सुधारने का पर कई बार इस में भी अच्छा विकल्प नही होता और मन मसोसकर किसी को भी चुन लेना पड़ता है इस तर्ज पर कि कुछ नही से तो बेहतर है कि कुछ हों .पर कई बार लगता है कि कुछ नही होना कुछ होने से बेहतर था .अब देखिये न एक कहानी में एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के लिए माँ का कलेजा निकाल लाता है निश्चित ही वहां उसके लिए उसकी प्रेमिका खास हों चली थी जो माँ के रिश्ते पर भारी पड़ गयी . यह विवाद का विषय हों सकता है कि यहाँ खासियत नही उसका हवासिपन रहा होगा वगैरह .......................
खैर इस खास के जंग में आज बुद्धिजीवी भी फंसे पड़े है और इनकी मशक्कत भी आकर खास पर रुक गयी है . आखिर खास कौन . लाख टके का सवाल है रेल बजट या क्रिकेट . क्रिकेट देश का धर्म है और तस पर क्रिकेट के भगवान का वन डे क्रिकेट में दोहरा शतक भला इससे खास क्या हों सकता है . पर दूसरी तरफ रेल है देश को सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला .देश के करीब हर व्यक्ति से सीधे जुडाव का प्रतीक .क्रिकेट हमारे लिए जूनून हों सकता है तो रेल किसी सुकून से कम नही . क्रिकेट और रेल में कौन है जिसके बिना भी जिन्दगी में एक रफ्तार बनी रह सकती है ...
कल अख़बार के पहले पेज पर अपने खास को देखने और दीखाने का जंग है . चूँकि यहाँ दीखाने वाले कि इस जंग में चलेगी इस लिए देखने वाले के पास सिवाय इंतजार के खुछ नही पर देखने वाले ने अपने खास को तय कर लिया है उसे पता है कि उसका खास कौन है और कल सुबह वह उसे ही देखने हेतु अख़बार चाहेगा बस अब यही चुनोती है दिखाने वाले के सामने . इस एकतरफा मैच में भी उसके हारने कि पूरी सम्भावना बरकरार है यदि वह देखने वाले के अनुरूप नही दिखा पाए .अब यहाँ एक और बहस सामने आती है कि इसका मतलब तो यही है कि हमे वही दिखाया जाता है जो हम देखना चाहते हैं अगर ऐसी ही बात है फिर हम बार बार इन्हें क्यूँ कंटेंट के लिए दोषी ठहराते हैं. पर यह मामला वैसा नही है क्यूंकि यहाँ हमने खुद को उसके लिए तयार किया हुआ है पर वहां हम ऐसी कोई तयारी नही होती हमे पता भी नही होता सामने क्या आने को है .चूकि ये दिल के करीब है इसलिए खास है और इसीलिए इस खास कि इतनी बेसब्री से आस है
वरना आज दोपहर से ही चैनलों ने अपने अपने खास को पुरे इत्मिनान से परोसा और दर्शकों ने भी जिसे अपना खास पाया उससे जुडाव पाया . उसके बारे में चर्चाएँ हुयीं . उसे आत्मसात किया गया . फिर भी एक कसक है ,एक ललक है उस खास के बारे में और जानने कि और पढने कि उसके और करीब जाने . यही वजह है कि कल सुबह का अभी से इंतजार है पर आज कि रात इतनी जालिम है कि कटती नहीं . अक्सर ऐसा होता है ,महसूस किया होगा जब किसी खास का इंतजार करो तो समय का चक्र बहुत धीरे घुमने लगता है .एक एक पल काटना मुश्किल होता है और पल तो मानो सालों में बदल रहे हों.
हम भी आज सुबह में रेल बजट पर लैब जर्नल निकाल रहे थे और शाम होते होते चर्चा तुल पकड़ ली कि ममता कि रेल कि जगह सचिन कि कहानी सेल करो .सचिन कि कहानी ज्यादा बिकेगी .पढ़ रहे है जानते हैं पर आगे तो व्यवसाय ही करनी है न. इसलिए यहाँ बेचने वाली बात तो करनी ही होगी ख़ुशी तो ईस बात कि है सारे दोस्त इस व्यवसाय के फायदे नुकसान को समझने लगे हैं .अब इसमें क्या छुपाना ८ महीने में ८०० बार बताया गया कि पत्रकारिता एक शुद्ध व्यवसाय है ..तभी तो हर कोई इस बात को लेकर भी परेशान था कि ऐसे मौकों पर किसे खास माना जाये . लेकिन आश्चर्य हुआ मुझे ये देखकर कि आज हम सभी को अपने लिए खास को इस आधार पर नही चुनना है कि वो हमारे दिल के कितने करीब है और हमे कितना अच्छा लगता है बल्कि इस आधार पर चुनना है कि वो बाजार में कितना फायदा पहुंचा सकता है .
सच आज खास कि परिभाषा भी कुछ खास हों गयी है .कल को खास कि परिभाषा एक बार फिर बदल जाये तो चिंतित मत होईयेगा .क्यूंकि जिन्दगी में कई बार अलग अलग समय पर अलग अलग लोग खास होंगे . कुछ खास पास में होंगे तो कुछ सिर्फ आभास में होंगे.पर जो भी खास होगा उसका एक एहसास होगा ..इस एहसास से ही उसके खास होने का विश्वाश होगा .
मैंने तो आज अपने खास दिन के लिए एक खास को अपने दिल दिमाग में बसा लिया है मै कल उसी कि खबरों की तलाश करूंगा और अगर आपका भी कोई किसी दिन या आज भी खास बन गया है तो कल से उसकी तलाश कीजिये. सच अपने लिए किसी खास की तलाश करना और फिर उसके बारे में जानने का प्रयास अपने आप में बहुत ही दिलचस्प और मजेदार है मुझे तो कम से कम इसकी अनुभूति हों रही है और मैं आपसे अपना अनुभव शेयर कर रहा हूँ .
शुभ रात्रि.

Tuesday, February 16, 2010

हाइटेक प्यार का दौर और आज की युवा पीढ़ी





वेलेंटाइन डे यानि प्यार का दिन। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से बिल्कुल अलग होने के बावजूद भारतीय समाज में किसी पर्व एवं त्योहार से कहीं ज्यादा खास हो चली है। यही नहीं करीब एक सप्ताह पहले से ही न जाने किस-किस डे के रूप में इसे मनाने की परंपरा है और यह बड़ी तेजी से भारतीय जनमानस में घुलती जा रही है।
मैं यहां न तो वेलेंटाइन को दोषी ठहराने की कोशिश कर रहा हूं ना ही उसकी उन्मुकतता से मुझे कोई परेशानी है और ना ही मैं उसके इतिहास में जाना चाहता
हूं । मेरा सीधा सा प्रश्न है कि क्या वेलेंटाइन का यथार्थ आज भी समाज में जिन्दा है? क्या प्यार का मतलब आज भी युवाओं के लिए वही है जो पहले था ? अहम सवाल यह भी है कि वेलेंटाइन का इस तरह से मनाया जाना क्या उचित है?
निश्चित ही आज समाज में वेलेंटाइन का मतलब बदल चुका है। आज वेलेंटाइन प्रेमी-प्रेमिकाओं के दम पर नहीं अपितु बाजार के दम पर जिंदा है। मीडिया और बाजार ने आज वेलेंटाइन का ऐसा आकर्षक रुप पैदा किया है कि न चाहते हुए भी युवा इसके आकर्षण के फंदे में फंसने को मजबूर हैं। आलम यह है कि लड़के-लड़कियों पर एक दूसरे को वेलेंटाइन बनाने का भूत सवार है।
कीमती तोहफों,तमाम साजो-सामान के साथ प्रेम निवेदन किया जा रहा है। इस वर्ष जो जिसका वेलेंटाइन है ,वह पिछले वर्षों में कितनों का वेलेंटाइन रहा है ,न तो कोई जानता है और ना ही जानना चाहता है। यह सिलसिला लगातार चल रहा है और आज का बाजार इसे आगे बढ़ाने के लिए हर तरह से प्रयासरत है। बाजार के कारण ही आज प्रेम निवेदन का सबसे बड़ा हथियार एसएमएस बन गया है। आज जज्बात नहीं जिस्म बोलते हैं।
प्यार के तीन भाग होते हैं- आत्मीयता,आवेग और प्रतिबद्धता । क्या मौजूद है ये तीनों गुण आज वेलेंटाइन मना रही युवा पीढ़ी के भीतर। निश्चित ही इसका जबाब न होगा। क्योंकि अब समय और वेलेंटाइन के मायने बदल चुके हैं। आज के हाइटेक प्यार के दौर में प्रेमी-प्रेमिकाओं के पास इतना वक्त कहां है कि वे उन खूबसूरत लम्हों को जिएं और एक दूसरे की भावनाओं को महसूस कर सकें। अब तो शार्टकट का जमाना है। प्यार में भी शार्टकट ने अपने लिए जगह बना ली है और इस शार्टकट के नए फार्मूलों में युवा पीढ़ी जल्दी से जल्दी वेलेंटाइन के अधिक से अधिक स्वाद चखने को बेकरार है।
आज प्यार में कितनी सच्चाई है और कितना प्यार करती है आज की युवा पीढ़ी एक दूजे से यह तो इनके कारनामों से ही स्पष्ट हो जाता है। कोई बेवफाई का इल्जाम लगाकर अपनी प्रेमिका को गोली मार रहा है तो कोई प्रेमिका को पाने के लिए अपने मां-बाप को,तो वहीं कोई दूसरी लड़की के चक्कर में अपनी ही बीबी को मौत के हवाले कर रहा है। क्या यही है वेलेंटाइन का यथार्थ ?
वेलेंटाइन के नाम पर जो माहौल आज समाज में पैदा हो रहा है उसके परिणाम स्वरूप ही दुनिया के तमाम मंचों से इसके विरोध में स्वर उठने शुरू हो गए हैं।
एक दार्शनिक ने तो लव को `ए मिसअंडरस्टैंडिंग बिटवीन टू फूल्स` करार दिया है तो वहीं वेलेंटाइन के धूर विरोधी चार्ली लिखते हैं- ~वेलेंटाइन डे अकेला एक ऐसा राष्ट्रीय पर्व है जो एक दिमागी बीमारी को समर्पित है। आपाहिज बनाने वाले लव नाम के इस छलावे को मनाने के लिए लोग फूल भेजेंगे,विज्ञापन छपवाएंगे और रेस्तरा बुक करवाएंगे। चार्ली ने तो वेलेंटाइन डे के पागलपन से मुकाबले के लिए 15 फरवरी को अनवेलेंटाइन डे के रूप में मनाने की नसीहत तक दे डाली। उनके अनुसार एक दिन तो इश्क के निगेटिव पहलुओं को भी समर्पित होना चाहिए। एक ऐसा दिन जब लोग ऐसे संदेशों को भी भेज सकें ......तुमने मेरी जिन्दगी बर्बाद कर दी अब हमें अलग हो जाना चाहिए.........माफ करो बाबा.......।
प्रेम का वास्तविक रूप यह नहीं है जो आज समास में व्याप्त है। प्रेम में समर्पण का भाव होता है उसमें बनावटीपन और खोखलापन नहीं होता। प्रेम का असली पाठ तो हम उस छोटे से नीरीह कीट से सीख सकते हैं जो यह जानते हुए भी की दीपक के पास जाने से उसके अस्तित्व को खतरा है वह प्रेम ही है जिसके वशीभूत वह अपने प्राण तक को न्योछावर करने से पीछे नहीं हटता। लैला-मजनूं, हीर-रांझा, सीरी-फरहाद की प्रेम कहानियां यदि सिर्फ गुलाबों की अदला-बदली से लेकर शारीरिक प्रेम तक ही सीमित होतीं तो अमर प्रेम कहानी नहीं बनतीं अपितु कब की मिट गई होतीं परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि वहां दिखावा नहीं वास्तविक प्रेम था। वहां झूठे प्रेम के फेहरिस्त में शामिल होने और दोस्तों को अपनी प्रेममयी लिस्ट दिखाने की होड़ नहीं थी बल्कि अपने प्रेम को भगवान का रूप मानकर उसे वरण करने की ललक थी। तब दिल से दिल के मिलन का चलन था आज जिस्म से जिस्म के मिलन की चाहत है।
जरूरत है वेलेंटाइन के यथार्थ तो समझने की। वेलेंटाइन के उस स्वरूप को समझने की जिसमें सादगी है,अपनापन है,समर्पण है। आज की युवा पीढ़ी हर मामले में अपने पुरखों से आगे है और नित आगे निकलने के प्रयास में है तो फिर प्रेम के क्षेत्र में यह पिछड़ापन क्यूं क्या उस बाजारवाद के कारण जो इतना हावी हो गया है कि जब चाहे तब हमको हमीं से चुरा ले और हम ऐतराज भी न जता सकें। आखिर ऐसा कब तक चलेगा ? युवा पीढ़ी को समय रहते इससे पार पाना होगा। बाजार से उपर उठकर प्यार के सच्चे आयाम को अपनाना होगा। और तब.....................
`` जिस्म नहीं जज्बात बोलेंगे,
लोग तोहफे नहीं प्य़ार तोलेंगे। ``

Monday, January 11, 2010

क्यूँ अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है ..........?





कभी कभी हम अनायास ही किसी के बहुत करीब पहुँच जातें हैं .उसकी हर बातें अच्छी लगने लगती है .वो हर पल दिल को भाने लगता है .कोई उसके बारे में कुछ भी गलत बोलने की कोशिश भर करे तो चिढ सी मचने लगती है .रोजाना बस उसी का ख्याल होता है .हर दिन दर्शन हो जाएँ दिल को बस इसी का आस होता है । न मिले ,न दिखे तो बेचैनी सी रहती है दिल में । सारा दिन बोझ सा लगता है । समय काटते नहीं कटते और गुस्सा दूसरों पर उतरता है

कई बार तो हम बहाना खोजते हैं । उससे मिलने के लिए तो कभी बात करने के लिए .कभी उसे छूने के लिए तो कभी कैमरे में कैद करने के लिए.पर जो भी बहाने बनाते हैं वो बड़े इत्मिनान और सोच समझकर बनाते हैं की उसे चोट न पहुंचे ।

इस क्रममें एक छोटी सी गलती अक्सर हमसे हो जाती है। हम यह नही समझने की कोशिश करते की की आखिर सामने वाले के दिल में क्या है, क्या उसे भी बेचैनी होती है ,क्या उसे भी हर पल हमारा ख्याल होता है ?

दरअसल हम प्रेमियों की बिडम्बना ही यही है की कई बार हम जान बुझकर भी बुने भ्रम की स्वप्निल दुनिया में जीना पड़ता है । इस दौरान कई बार हम जगे होतें हैं पर जबरदस्ती आँखे मूंदे होतें है क्यूंकि एक अनचाहा डॉ होता है इस हसीं ख्वाब के बिखरने का ।

पर सच तो सच होता है एक न एक दिन तो उसे सामने आना ही है । और उस पर भी दिल्लगी के सच तो और भी क्रूर होतें हैं जो कई बार इतने भूखे होतें हैं की की बिना वक़्त गवाएं कई कई जिंदगियां लील जातें हैं ।

हालाँकि हम जैसे कुछ लोगों के साथ उस भयावह सच के सामने आने पर भी ऐसा कुछ घटित नही होता क्यूंकि हमे कई बार आगे-पीछे का भी सोचना पडतहै और इस सोचने की क्रम में शुक्र है की हम इसे जिन्दगी में ज्यादा महत्वपूर्ण न मानकर जिस तरह भी हो सके उससे उबरने की कोशिश करते हैं । पर दिल के किसी कोने में एक जख्म तो बन ही जाता है जो गाहे बगाहे पीड़ा पहुंचाते रहता है ।

अक्सर ऐसी बेवफाई के बाद जब हम तन्हाई में होतें हैं तो इशी रिश्ते के बारे में सोचा करतें हैं । इससे जुडी अतीत की यादें सुखद कम दुखद ज्यादा प्रतीत होती है .जैसे जैसे अतीत के पन्ने खुलते जाते हैं वैसे-वैसे हम सच से रूबरू होते जाते हैं । तब हम पातें हैं की दरअसल उस समय जब हम खुश होते थे वह बनावती ख़ुशी थी । उसके प्रति लगाव और उसकी बैटन को बिना प्रतिकार मानते जाना सिर्फ और सिर्फ दैहिक आकर्षण था प्रेम तो वहन था ही नही ।

इस सोचने के क्रम में हम हम कभी खुद को तो कभी सामने वाले को दोषी ठहरातें हैं । उलझने बढती ही रहतीं है । किसी को भी दोषी ठहराएँ दिमागी कसरत तो अपनी ही होती है .फिर इन तन्हाइयों और अतीत की इन यादों से आजिज आकर इससे दूर होने का माध्यम ढूंढते हैं जो कई बार खतरनाक स्टेप होते हैं

हमे अक्सर ऐसा करते समय ये बात याद रखनी चाहिए की की जिस माध्यम को हम इससे दूर होने के लिए अपना रहे है वे कुछ समय मात्र के लिए होता है जबकि यादें और तन्हाईयाँ हमारे साथ तब तक बनी रहती है जब तक की हममे जान रहती है .

Thursday, January 7, 2010

मुझे तो नही लगता ..........






नया साल है मुझे तो नही लगता आखिर इसमें नया क्या है ? सब कुछ तो पुराने साल की ही तरह नजर आ रहा है। सुना है इस साल भी ३६५ दिन ही होंगे.१ घंटे में वही ६० मिनट .१ मिनट में वही ६०सेकेन्द। सुना है इस साल भी रविवार के दिन छुटियाँ रहेंगी। शनिवार रविवार को लोग वीकेंड पर जायेंगे । शुक्रवार को फिल्मे रिलीज होंगी । सरकार भी पुरानी होगी। नेता भी पुराने होंगे उनके वादे भी पुराने होंगे। वही रिश्तेदार वही दोस्त होंगे जो सुख दुःख में वैसे ही बिहैव करेंगे जैसे पुराने वर्ष में करते आयें है।

नया तो कुछ सचमुच नया जैसा होना ही चाहिए। जिसे देखकर या अनुभूति कर ऐसा प्रतीत हों की हाँ ये सचमुच नया है जिसे हम कल तक नही जानते थे। लेकिन नया कुछ बिलकुल नए साल में नही दिख रहा ।

वही कॉलेज ,वही सपने ,वही असयिन्मेंट ,वही टेंशन आखिर कब तक वही यार ..................................

ये साडी चीजें तो वैसे ही है जैसे पुराने साल में थी तो खाक नया साल और इन्हें तो देखो गुब्बारे फोड़ रहे है की नया साल आ गया अरे भैया जरा देखो तो वो गुब्बारा भी पुराने साल का है। गले मिल रहे हैं ,टाफियां खिला रहे हैं सब कुछ पुराना हथकंडा .क्या है यार अगर नया साल है तो नए की तरह करो न ।

सचमुच नया तो तब होता जब हर चीज नए तरीके से हम करना शुरू करते । गले मिलना है नए तरीके से .लोगो से मिलना है तो नए लोगो से मिलेंगे नए साल में उन्हें अपने से जोड़ेंगे। कॉलेज है सब कुछ करेंगे पर नए तरीके से करेंगे ,जो भी करेंगे उसमे नयापन होगा .प्रयोग होगा । दिल से करेंगे अब सब कुछ पुराने साल में दिमाग की करी थी हम सबने।

टेंशन कभी नही । पेंशन तक जीने की इच्छा नही। हसेंगे ओ भी खुलकर क्युकी पुराने साल में रुककर हंसे थे ।

नेता पुराने हैं कोई बात नही पर उनके इरादे ,वादे पुराने नही रहने देंगे । सरकार को नए तरीके से चलने और देश में सार्थक नयापन लाने के लिए जिस स्तर पर हों सकेगा मजबूर करेंगे ।

कुछ नया करना है तो कुछ नया सोचना भी होगा। अरे सोचने से घबराते क्यूँ हों .सोचो खूब सोचो .जहाँ तक सोचते जा सकते हों जाओ बस याद रखना वापिस तुम्हे खुद आना है और अगर वापिस लौटे तो निश्चित ही कुछ नया लेकर लौटोगे और नए साल में कुछ नया करने के लिए हर पल तैयार रहोगे ।

नए साल से याद आया अपनी दिल्ली की सर्दी इस नए साल में चरम पर है ।बाहर कुहरा घना है ,सिहरन पैदा करती हवाएं .शारीर में कम्पन पैदा करती ठण्ड । सब कुछ ऐसा है की रजाई से बहार निकलने की इच्छा नही हों रही । सोने की इच्छा बार बार होगी पर याद रखना है की इस ठण्ड में अगर एक बार नींद लगी और अपनी रजाई जैसे ही गर्मी का एहसास करने लगी तो फिर लाख छह कर भी उसके चरमानन्द से बाहर निकलने की हमारी इच्छा नही होगीऔर यदि उपर से कोई गर्म चाय थमा दे तो फिर पूछना ही क्या / ऐसा लगेगे जन्नत इसी कमरे तक सिमित है। पर याद रखिये यहीं हम हार बैठेंगे । ये जितनी चीजें सुख प्रदान करती है कई बार बहुत खतरनाक होतीं है पर मानव मन की बिडम्बना यह है की वो इसे पहचान ही नही पता और जब तक पहचानता है तब तक बहुत देर हों चुकी होती है ।

इसे पहचाना होगा क्युकी नये साल में नया हम पुराने साल की तरह सो कर नही कर पाएंगे । ठण्ड है कोई बात नही खुद को इससे बचाते हुए आगे तो बढ़ ही सकतें है और हाँ जो भी कर्ण अहै उसे इसी बीच ही करना है । वक़्त कभी हमारे लिए नही ठहरेगा ये बातें हम सभी को पता हैं तो क्या हम वक़्त की रफ्तार को चैलेंज दे प् रहे हैं ? क्यूँ न वक़्त के साथ भी हम नए साल में एक नए तरीके से लडाई लड़ें ? क्यूँ न हर काम में वक़्त से आगे निकलने का प्रयास करें पुराने साल की तरह यह सोचने की अपेक्षा की समय आएगा तो सब हों जायेगा .कठिन है जानता हूँ पर इसी में तो मजा है ।

नए साल में सभी ने कुछ न कुछ शपथ लिया है कुछ ने एक से ज्यादा भी ले रखी होंगी । तो एक और शपथ हों सकता है जो लिया हों उससे मिलता जुलता हों , क्या फर्क पड़ता है एक बार और सही । और यह ये की नए साल में सब कुछ बिलकुल नए तरीके से करेंगे और उस नयापन का जी भरकर लुत्फ़ उठाएंगे ।


और तभी आल इज न्यू होगा ।