Thursday, September 3, 2009

काश मर्लिन तू लौट आती

आज जाने क्यूँ रह रह कर मर्लिन की याद सता रही है .कभी उसे सामने तो नही देख पाया पर जब भी जहाँ भी देखा बस देखता ही रहा .मुझे याद है वो दिन जब मै लाइब्रेरी में उदास इधर उधर की किताबें ढूंढ़ रहा था ,साथ ही याद है वह लड़की भी जिसने मुझसे उस उदासी की वजह जानना चाहा था। दरअसल में ख़ुद भी नही जनता था की में क्यूँ उदास हूँ शायद उस उदासी में ही मेरी जिन्दगी के कुछ अनमोल मोटी बंद थे और जैसे मैंने उसे बताया की पढ़ाई से बोर मैकुछ अलग पढ़ना चाहता हूँ.निकला था उसने वो किताब जिसकी नायिका को आज भी याद कर उसकी वापसी की दुआएं करता हूँ.शायद मुनरो को मै इसलिए भी याद ज्यादा करता हूँ की मुनरो के बहाने मुझे मेरी monika मिल गई are वही जिसने मुझे मुनरो की किताब दी थी .खैर मुनरो की बात करते हैं .एक परी जिसने जहाँ भी चाहा वहाँ ,जिसे चाहा उसे ,जब चाहा तब अपने हुस्न का दीवाना बना डाला.मुनरो की अदा अनोखी थी यही वजह है की मुनरो सबके दिलों पर राज करती थी.पहली बार मुनरो के बारे मेंमैंने अपने मामा से सुना था जो अपने दोस्तों से उसकी खूबसूरती का बखान कर रहे थे .तब बहुत छोटा था मैं .लेकिन इतना भी नही की किसी के खूबसूरती का एहसास न कर सकूं .खैर स्कूल में कभी उसे पढ़ने का मौका या जानने का नही मिला .बेकरारी बढी तो हल भी निकला और हल ऐसा की जिन्दगी की रफ्तार ही बदल गई। आज मै और मोनिका मुनरो पर घंटों बातें करतें है शायद इसलिए भी की हमें मिलाने की वजह उसी किताब में दबी थी जिस किताब में मुनरो की यादें.आज हमारे बीच वो किताब भी है ,हम दोनों भी हैं ,बटों का जरिया भी है ,किताब से मिली जानकारी ,नेट से देखी तस्वीरें भी हैं ,यादें हैं बस नही है तो मुनरो जिसका होना मेरे लिए जीने का सहारा होता मुनरो एक बार आ जाओ.तेरी याद में तेरा एक दीवाना .....................................

1 comment:

vikas vashisth said...

मोनिका मिली है क्या तुम्हे उसमें मुनरो का अक्स नज़र नहीं आता...