Monday, October 26, 2009

कितना हसीं सफर था




शाम के करीब ५ बज रहे थे. मै अहमदाबाद स्टेशन पर अपने जीजू के साथ पहुंचा .दरअसल मुझे आज डेल्ही लौटना था .मैं दीवाली की छुटी में दीदी के पास गया था और आज छुटियाँ खत्म हो गई थीं ।
जीजू बैग पकड़े थे और मैं उनसे बातें कर रहा था की अचानक एक चेहरे ने मुझे घूमकर देखने को मजबूर कर दिया। एक खुबसूरत सी लड़की मेरे पास से गुजर रही थी और मेरी निगाहे उसका पीछा करने लगी .जीजू जबरदस्ती मुझे आगे चार्ट के पास ले जाने लगे और मुझे उनपर गुस्स्सा आ रहा था.खैर भगवान को कोसते हुए मै जीजू के साथ आगे बढ़ गया नाम देखकर khush था की चलो टिकेट तो कन्फर्म हो गया पर दुखी था की उस खुबसूरत चेहरे को ठीक से न देख सका .अब तक ट्रेन भी आकर सामने लग चुकी थी .मैने जैसे ही ट्रेन में एंट्री करी सामने उसी लड़की को देखकर अचानक भौचक्का सा रह गया .समझ नही आ रहा था की खुदा मेरे पर ,इतना मेहरबान कैसे हो सकता है। खैर खुदा को बार बार धन्यबाद करते हुए मै अपने सिट पर बैठा .अब तो बस आंखे ही बात कर रही थीं जुबान खामोश थे .कंभी नजरे मिलती कभी झुक जाती दोनों तरफ बराबर की आग लगी थी .ये सिलसिला करीब १ घंटे तक चला .अब आँखों की बातें इशारों में बदल चुकी थीं .मैंने ही इशारों से उसका नम्बर माँगा .सोचा वो मना करेगी पर उसने इसके बजाय अपना नुम्बर देने के साथ मेरा नम्बर भी मांग लिया .हम दोनों का रोमिंग लग रहा था पर प्यार में इसके लिए कोई जगह नही .जब प्यार होता है तो बस प्यार होता है .हम दोनों रोमिंग में ही संदेश और फ़ोन के ज़रिए एक दुसरे को समझने और जानने लगे.उसकी आवाज उसके चेहरे की तरह ही मासूम और प्यारी थी .धीरे धीरे जब बैलेंस खत्म होने के कगार पर पहुँचा तो हमने अब गेट के पास मिलने की ठानी .दोनोंअपने अपने सिट से उतरकर गेट के पास पहुच गए .इस समय रत के २ बज रहे थे और डब्बे के सभी लोग सो रहे थे जगी थी तो बस दो निगाहें जो एक दुसरे में गुम हो जाना चाहती थीं .खैर हम गेट पर मिले.वो थोड़ा nrwas थी .उसके बात करने के अंदाज से ऐसा लग रहा था .मैं समझ सकता था वो एक लड़की थी और लड़कियों को मुझसे बेहतर कौन समझ सकता है .मैंने उसे पुरा वक्त दिया सहज होने का.उसे मेरा साथ अब अच्छा lagne लगा था .हमने करीब २ घंटे तक बातें की।हम गेट के पास ही ही baith गए । एक दुसरे के बाँहों में बाहें डाले हम दोनों एक दुसरे में खो से गए थे की सामने से टीटी की आवाज ने हमे अचानक दूर होने को मजबूर किया.अरे इतनी रात गए तुम यह क्या कर रहे हो जाओ अपने सिट पर सो जाओ .वो घबरा कर भागने को हुई की मैंने उसकी बांह थाम ली.वो रुक गई पर वो डर रही थी उसके कांपते पैर इस बात की गवाही दे रहे थे। मैंने टीटी को बोला की हमे नींद नही आ रही तो फालतू में क्यों सोये.वो मुझे देखे जा रही thi उसकी निगाहों को दुसरे तरफ देखते हुए भी मैं पढ़ सकता था .नींद कैसे आएगी अब तो आ भी नही sakati .कम से कम गेट बंद कर लो फिर जो जी में आए करो।टीटी इतना बोलकर चला गया.वो खुश थी ऊसके चेहरे की मुस्कान ये बात बोल रही थी.की अचानक वो udas हो गई .मुझे पता था की वो kyun udas है.उसका station जो आने wala था .

Monday, October 12, 2009

या तो अपना लो नही तो बख्श दो




बाबू साहब अब वह समय नहीं रहा। पहिले यहां जो भी आता था उसे यहाँ जो भी मिलता था उससे घंटो बतियाता था । हर चीज जानने की इच्छा रहती थी । अब तो मानो जैसे हम अछूत हो गए हों या उनकी इच्छा ही मर गई हो। कोई न तो पास आता है ना ही कुछ पुछता है। बड़ी खुशी हुई भइया और साथ में हैरानी भी कि आप हमरी पास आए हैं और उ भी इहां के बारे में जानने के लिए।
रामदीन पिछले पंद्रह सालों से इंडिया गेट पर अपने चमकीले खिलौनों के साथ बैठते हैं। रामदीन बिहार के हैं। उन्होने कभी अपने इस व्यवसाय को बदलने की नहीं सोची। मेरे हथेली को थाम इत्मीनान से बैठे रामदीन अपने पंद्रह सालों के तजुर्बे को बताते चले गए और मैं इस पंद्रह मिनट की बातचीत में पंद्रह साल की उनकी यात्रा उनके उदीस चेहरे और थकी आंखों में महसूस करता रहा।
भइया सच कहूं तो यहाँ अगर बैठने के लिए इतना सारा खाली जगह और इतने सारे पेड़ न होते तो इस शहादत स्थल की शाम ऐसी न होती। आप लको विश्वास न हो तो घूम कर देख लीजिए। शहादत स्थल के इस अमर ज्योति से निकलने वाले अकुलनीय प्रकाश में भीगने के बजाए ज्यादातर लोग यहां आसपास फैले अंधेरों में गुम हो जाना चाहते हैं।
चुटकी लेते हुए रामदीन कहते हैं जबसे यहां आने वालों को अंधेरा भाने लगा है,मेरे व्यवसाय की तो शामत आ गई है। आप देख ही रहे हैं मेरे सारे खिलौने चमकीले हैं और चमक से यहां सब घबराते हैं। हाँ बच्चे जरूर मेरे खिलौनों की तरफ दौड़ते हैं पर आजकल लोग उन्हें घर छोड़कर इंडिया गेट घूमने आते हैं।
लोगों की सोच में आए परिवर्तन का प्रमाण देने के लिए रामदीन अचानक कार से उतरे एक सज्जन के पूछ बैठते हैं भइया इंडिया गेट पर जिन सैनिकों के नाम खुदे हैं वे किस युद्ध में मारे गए थे। जवाब आता है मै वही जानता ,ना ही मैं जानना चाहता हूँ। मैं तो हर शनिवार शाम यहाँ एन्जवाय करने आता हूँ।यह सचम्च आनंददायक जगह है।
शहादत स्थल को आनंददायक स्थल में बना दिया गया है।लोग हर शाम यहाँ जश्न मनाने आते हैं। अमर ज्योति जलती रहती है और दूर अंधेरे में बैठे गुमनाम जिंदगियों को देखकर कई और दिल जलते रहते हैं।रामदीन एकटक ताकता रहता है कि कोई बच्चा उस तक भी आए। पर यहाँ जो भी आता है वह या तो पचास रूपए में स्नयं को एक फोटो में इंडिया गेट के साथ चिपका लेना चाहता है या फिर आसपास फैले अंधेरों में गुम हो जाना चाहता है। व्यथित तरसती सैनिकों की आत्माएं और रामदीन सरीखे श्रमिक वहां एन्जवाय करने आ रहे लोगों से दुआ कर रहे हैं कि या तो बख्श दो या हमें अपना लो।

या तो मुझे अपना लो नही तो बख्श दो

Sunday, October 4, 2009

कुछ तो है इस बाजार में



स्नेहा को जब भी कुछ चटपटा खाने की इच्छा होती है वह हास्टल से बेर सराय की ओर निकल पड़ती है।निकलते समय वह चाहती है कि कोई
उसके साथ चले।कोई मिला तो ठीक नहीं तो ऐसे भी चलेगा। अकेले ही कुच कर देती है बेरसराय की तरफ।स्नेहा को बेरसराय के गोलगप्पे बहुत पसंद है।बल्कि वह तो शर्त लगा बैठती है कि देखें कौन कितना खाता है।
यह सिर्फ एक स्नेहा की कहानी नहीं है। हास्टल में ऐसी कई स्नेहा मौजूद है । हास्टल में रहने वाली लड़कियों के लिए बेरसराय का यि छोटा सा बाजार किसी वरदान से कम नहीं ।
चाट खाते हुए हंसकर पूजा कहती है मुझे तो यह जगह बहुत ही पसंद है । मैं तो यहं सप्ताह में कई दिन आती हूं । मुझे यहां भी हर चीज पसंद है
खूशबू को यहां की किताबों से अत्यंत लगाव है ।वह हर सप्ताह वीकएंड पर यहां आती है और से कुछ प्रतियोगी किताबें ले जाती है । पूछने पर खूशबू बताती है कि एक तो यह बाजार हास्टल के काफी नजदीक है दूसरे यहां पर सभी तरह की उपयोगी पुस्तकें उपलब्ध है ।
बेरसराय के बाजार से सटे ही एक किराए के रूम में रह रहे हिंदी पत्रकारिता के छात्र संतोष सिंह ने बताया कि शाम को यहां का नजारा अदभूत होता है। विभिन्न शिक्षण संस्थानों के छात्रों का जमावड़ा सा होता है । कई तरह के विचारों और संस्कृतियों को देखने और समझने का मौका मिलता है । सचमूच में यह अपने आप में अदभूत अनुभव है ।
मुग्धा एटीम के कारम बेरसराय बाजार की प्रशंसा करती है, वह कहती है कि मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि यहां पर एक ही साथ तीन-तीन एटीएम लगे पड़े हैं पहले मुझे जेएनयु में घंटों लाइन में लगना पड़ता था अब तो बहुत अच्छा है । आराम से पैसे भी निकाल लेती हूं और जब पास में पैसे हों तो कुछ खरीदारी भी हो जाती है
आसीमा को बेरसराय बाजार से कुछ शिकायत है । पूछने पर वह बताती है कि बाजार में पार्किंग की कोई सुविधा नहीं है । चारों तरफ गंदगी का ढेर लगा है डस्टबिनों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है ।
बेरसराय का यह बाजार स्वंय में संपूर्ण है साथ ही करीने से सजी दुकानें बाजार के आकर्षण में ईजीफा करती है
सच इस बाजार में कुछ तो खास है..........................................

Thursday, September 3, 2009

काश मर्लिन तू लौट आती

आज जाने क्यूँ रह रह कर मर्लिन की याद सता रही है .कभी उसे सामने तो नही देख पाया पर जब भी जहाँ भी देखा बस देखता ही रहा .मुझे याद है वो दिन जब मै लाइब्रेरी में उदास इधर उधर की किताबें ढूंढ़ रहा था ,साथ ही याद है वह लड़की भी जिसने मुझसे उस उदासी की वजह जानना चाहा था। दरअसल में ख़ुद भी नही जनता था की में क्यूँ उदास हूँ शायद उस उदासी में ही मेरी जिन्दगी के कुछ अनमोल मोटी बंद थे और जैसे मैंने उसे बताया की पढ़ाई से बोर मैकुछ अलग पढ़ना चाहता हूँ.निकला था उसने वो किताब जिसकी नायिका को आज भी याद कर उसकी वापसी की दुआएं करता हूँ.शायद मुनरो को मै इसलिए भी याद ज्यादा करता हूँ की मुनरो के बहाने मुझे मेरी monika मिल गई are वही जिसने मुझे मुनरो की किताब दी थी .खैर मुनरो की बात करते हैं .एक परी जिसने जहाँ भी चाहा वहाँ ,जिसे चाहा उसे ,जब चाहा तब अपने हुस्न का दीवाना बना डाला.मुनरो की अदा अनोखी थी यही वजह है की मुनरो सबके दिलों पर राज करती थी.पहली बार मुनरो के बारे मेंमैंने अपने मामा से सुना था जो अपने दोस्तों से उसकी खूबसूरती का बखान कर रहे थे .तब बहुत छोटा था मैं .लेकिन इतना भी नही की किसी के खूबसूरती का एहसास न कर सकूं .खैर स्कूल में कभी उसे पढ़ने का मौका या जानने का नही मिला .बेकरारी बढी तो हल भी निकला और हल ऐसा की जिन्दगी की रफ्तार ही बदल गई। आज मै और मोनिका मुनरो पर घंटों बातें करतें है शायद इसलिए भी की हमें मिलाने की वजह उसी किताब में दबी थी जिस किताब में मुनरो की यादें.आज हमारे बीच वो किताब भी है ,हम दोनों भी हैं ,बटों का जरिया भी है ,किताब से मिली जानकारी ,नेट से देखी तस्वीरें भी हैं ,यादें हैं बस नही है तो मुनरो जिसका होना मेरे लिए जीने का सहारा होता मुनरो एक बार आ जाओ.तेरी याद में तेरा एक दीवाना .....................................

Monday, August 31, 2009


आज बहुद दिन बात उससे मेरी बात हुई .बिल्कुल नही बदला था उसका अंदाज.वही बात-बात में झगड़ना ,रूठना फ़िर मानना .मैं भी तो यही चाहता था की न बदली हों aaखीर वो मेरे सपनो की रानी जो थी। पर आज वो मेरे साथ नही पर उसकी यादें मेरे साथ हैं