Monday, October 12, 2009

या तो अपना लो नही तो बख्श दो




बाबू साहब अब वह समय नहीं रहा। पहिले यहां जो भी आता था उसे यहाँ जो भी मिलता था उससे घंटो बतियाता था । हर चीज जानने की इच्छा रहती थी । अब तो मानो जैसे हम अछूत हो गए हों या उनकी इच्छा ही मर गई हो। कोई न तो पास आता है ना ही कुछ पुछता है। बड़ी खुशी हुई भइया और साथ में हैरानी भी कि आप हमरी पास आए हैं और उ भी इहां के बारे में जानने के लिए।
रामदीन पिछले पंद्रह सालों से इंडिया गेट पर अपने चमकीले खिलौनों के साथ बैठते हैं। रामदीन बिहार के हैं। उन्होने कभी अपने इस व्यवसाय को बदलने की नहीं सोची। मेरे हथेली को थाम इत्मीनान से बैठे रामदीन अपने पंद्रह सालों के तजुर्बे को बताते चले गए और मैं इस पंद्रह मिनट की बातचीत में पंद्रह साल की उनकी यात्रा उनके उदीस चेहरे और थकी आंखों में महसूस करता रहा।
भइया सच कहूं तो यहाँ अगर बैठने के लिए इतना सारा खाली जगह और इतने सारे पेड़ न होते तो इस शहादत स्थल की शाम ऐसी न होती। आप लको विश्वास न हो तो घूम कर देख लीजिए। शहादत स्थल के इस अमर ज्योति से निकलने वाले अकुलनीय प्रकाश में भीगने के बजाए ज्यादातर लोग यहां आसपास फैले अंधेरों में गुम हो जाना चाहते हैं।
चुटकी लेते हुए रामदीन कहते हैं जबसे यहां आने वालों को अंधेरा भाने लगा है,मेरे व्यवसाय की तो शामत आ गई है। आप देख ही रहे हैं मेरे सारे खिलौने चमकीले हैं और चमक से यहां सब घबराते हैं। हाँ बच्चे जरूर मेरे खिलौनों की तरफ दौड़ते हैं पर आजकल लोग उन्हें घर छोड़कर इंडिया गेट घूमने आते हैं।
लोगों की सोच में आए परिवर्तन का प्रमाण देने के लिए रामदीन अचानक कार से उतरे एक सज्जन के पूछ बैठते हैं भइया इंडिया गेट पर जिन सैनिकों के नाम खुदे हैं वे किस युद्ध में मारे गए थे। जवाब आता है मै वही जानता ,ना ही मैं जानना चाहता हूँ। मैं तो हर शनिवार शाम यहाँ एन्जवाय करने आता हूँ।यह सचम्च आनंददायक जगह है।
शहादत स्थल को आनंददायक स्थल में बना दिया गया है।लोग हर शाम यहाँ जश्न मनाने आते हैं। अमर ज्योति जलती रहती है और दूर अंधेरे में बैठे गुमनाम जिंदगियों को देखकर कई और दिल जलते रहते हैं।रामदीन एकटक ताकता रहता है कि कोई बच्चा उस तक भी आए। पर यहाँ जो भी आता है वह या तो पचास रूपए में स्नयं को एक फोटो में इंडिया गेट के साथ चिपका लेना चाहता है या फिर आसपास फैले अंधेरों में गुम हो जाना चाहता है। व्यथित तरसती सैनिकों की आत्माएं और रामदीन सरीखे श्रमिक वहां एन्जवाय करने आ रहे लोगों से दुआ कर रहे हैं कि या तो बख्श दो या हमें अपना लो।

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