
कभी कभी हम अनायास ही किसी के बहुत करीब पहुँच जातें हैं .उसकी हर बातें अच्छी लगने लगती है .वो हर पल दिल को भाने लगता है .कोई उसके बारे में कुछ भी गलत बोलने की कोशिश भर करे तो चिढ सी मचने लगती है .रोजाना बस उसी का ख्याल होता है .हर दिन दर्शन हो जाएँ दिल को बस इसी का आस होता है । न मिले ,न दिखे तो बेचैनी सी रहती है दिल में । सारा दिन बोझ सा लगता है । समय काटते नहीं कटते और गुस्सा दूसरों पर उतरता है
कई बार तो हम बहाना खोजते हैं । उससे मिलने के लिए तो कभी बात करने के लिए .कभी उसे छूने के लिए तो कभी कैमरे में कैद करने के लिए.पर जो भी बहाने बनाते हैं वो बड़े इत्मिनान और सोच समझकर बनाते हैं की उसे चोट न पहुंचे ।
इस क्रममें एक छोटी सी गलती अक्सर हमसे हो जाती है। हम यह नही समझने की कोशिश करते की की आखिर सामने वाले के दिल में क्या है, क्या उसे भी बेचैनी होती है ,क्या उसे भी हर पल हमारा ख्याल होता है ?
दरअसल हम प्रेमियों की बिडम्बना ही यही है की कई बार हम जान बुझकर भी बुने भ्रम की स्वप्निल दुनिया में जीना पड़ता है । इस दौरान कई बार हम जगे होतें हैं पर जबरदस्ती आँखे मूंदे होतें है क्यूंकि एक अनचाहा डॉ होता है इस हसीं ख्वाब के बिखरने का ।
पर सच तो सच होता है एक न एक दिन तो उसे सामने आना ही है । और उस पर भी दिल्लगी के सच तो और भी क्रूर होतें हैं जो कई बार इतने भूखे होतें हैं की की बिना वक़्त गवाएं कई कई जिंदगियां लील जातें हैं ।
हालाँकि हम जैसे कुछ लोगों के साथ उस भयावह सच के सामने आने पर भी ऐसा कुछ घटित नही होता क्यूंकि हमे कई बार आगे-पीछे का भी सोचना पडतहै और इस सोचने की क्रम में शुक्र है की हम इसे जिन्दगी में ज्यादा महत्वपूर्ण न मानकर जिस तरह भी हो सके उससे उबरने की कोशिश करते हैं । पर दिल के किसी कोने में एक जख्म तो बन ही जाता है जो गाहे बगाहे पीड़ा पहुंचाते रहता है ।
अक्सर ऐसी बेवफाई के बाद जब हम तन्हाई में होतें हैं तो इशी रिश्ते के बारे में सोचा करतें हैं । इससे जुडी अतीत की यादें सुखद कम दुखद ज्यादा प्रतीत होती है .जैसे जैसे अतीत के पन्ने खुलते जाते हैं वैसे-वैसे हम सच से रूबरू होते जाते हैं । तब हम पातें हैं की दरअसल उस समय जब हम खुश होते थे वह बनावती ख़ुशी थी । उसके प्रति लगाव और उसकी बैटन को बिना प्रतिकार मानते जाना सिर्फ और सिर्फ दैहिक आकर्षण था प्रेम तो वहन था ही नही ।
इस सोचने के क्रम में हम हम कभी खुद को तो कभी सामने वाले को दोषी ठहरातें हैं । उलझने बढती ही रहतीं है । किसी को भी दोषी ठहराएँ दिमागी कसरत तो अपनी ही होती है .फिर इन तन्हाइयों और अतीत की इन यादों से आजिज आकर इससे दूर होने का माध्यम ढूंढते हैं जो कई बार खतरनाक स्टेप होते हैं
हमे अक्सर ऐसा करते समय ये बात याद रखनी चाहिए की की जिस माध्यम को हम इससे दूर होने के लिए अपना रहे है वे कुछ समय मात्र के लिए होता है जबकि यादें और तन्हाईयाँ हमारे साथ तब तक बनी रहती है जब तक की हममे जान रहती है .

1 comment:
kya likhta hain aap mishrajee. mere khyal se aap me bhaavnaon ko na sirf samajhne ki balki use wyakt kartne ki bhi kala koot koot kar bhari hui hai. shaandaar jaari rakhiye.
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