Thursday, January 7, 2010

मुझे तो नही लगता ..........






नया साल है मुझे तो नही लगता आखिर इसमें नया क्या है ? सब कुछ तो पुराने साल की ही तरह नजर आ रहा है। सुना है इस साल भी ३६५ दिन ही होंगे.१ घंटे में वही ६० मिनट .१ मिनट में वही ६०सेकेन्द। सुना है इस साल भी रविवार के दिन छुटियाँ रहेंगी। शनिवार रविवार को लोग वीकेंड पर जायेंगे । शुक्रवार को फिल्मे रिलीज होंगी । सरकार भी पुरानी होगी। नेता भी पुराने होंगे उनके वादे भी पुराने होंगे। वही रिश्तेदार वही दोस्त होंगे जो सुख दुःख में वैसे ही बिहैव करेंगे जैसे पुराने वर्ष में करते आयें है।

नया तो कुछ सचमुच नया जैसा होना ही चाहिए। जिसे देखकर या अनुभूति कर ऐसा प्रतीत हों की हाँ ये सचमुच नया है जिसे हम कल तक नही जानते थे। लेकिन नया कुछ बिलकुल नए साल में नही दिख रहा ।

वही कॉलेज ,वही सपने ,वही असयिन्मेंट ,वही टेंशन आखिर कब तक वही यार ..................................

ये साडी चीजें तो वैसे ही है जैसे पुराने साल में थी तो खाक नया साल और इन्हें तो देखो गुब्बारे फोड़ रहे है की नया साल आ गया अरे भैया जरा देखो तो वो गुब्बारा भी पुराने साल का है। गले मिल रहे हैं ,टाफियां खिला रहे हैं सब कुछ पुराना हथकंडा .क्या है यार अगर नया साल है तो नए की तरह करो न ।

सचमुच नया तो तब होता जब हर चीज नए तरीके से हम करना शुरू करते । गले मिलना है नए तरीके से .लोगो से मिलना है तो नए लोगो से मिलेंगे नए साल में उन्हें अपने से जोड़ेंगे। कॉलेज है सब कुछ करेंगे पर नए तरीके से करेंगे ,जो भी करेंगे उसमे नयापन होगा .प्रयोग होगा । दिल से करेंगे अब सब कुछ पुराने साल में दिमाग की करी थी हम सबने।

टेंशन कभी नही । पेंशन तक जीने की इच्छा नही। हसेंगे ओ भी खुलकर क्युकी पुराने साल में रुककर हंसे थे ।

नेता पुराने हैं कोई बात नही पर उनके इरादे ,वादे पुराने नही रहने देंगे । सरकार को नए तरीके से चलने और देश में सार्थक नयापन लाने के लिए जिस स्तर पर हों सकेगा मजबूर करेंगे ।

कुछ नया करना है तो कुछ नया सोचना भी होगा। अरे सोचने से घबराते क्यूँ हों .सोचो खूब सोचो .जहाँ तक सोचते जा सकते हों जाओ बस याद रखना वापिस तुम्हे खुद आना है और अगर वापिस लौटे तो निश्चित ही कुछ नया लेकर लौटोगे और नए साल में कुछ नया करने के लिए हर पल तैयार रहोगे ।

नए साल से याद आया अपनी दिल्ली की सर्दी इस नए साल में चरम पर है ।बाहर कुहरा घना है ,सिहरन पैदा करती हवाएं .शारीर में कम्पन पैदा करती ठण्ड । सब कुछ ऐसा है की रजाई से बहार निकलने की इच्छा नही हों रही । सोने की इच्छा बार बार होगी पर याद रखना है की इस ठण्ड में अगर एक बार नींद लगी और अपनी रजाई जैसे ही गर्मी का एहसास करने लगी तो फिर लाख छह कर भी उसके चरमानन्द से बाहर निकलने की हमारी इच्छा नही होगीऔर यदि उपर से कोई गर्म चाय थमा दे तो फिर पूछना ही क्या / ऐसा लगेगे जन्नत इसी कमरे तक सिमित है। पर याद रखिये यहीं हम हार बैठेंगे । ये जितनी चीजें सुख प्रदान करती है कई बार बहुत खतरनाक होतीं है पर मानव मन की बिडम्बना यह है की वो इसे पहचान ही नही पता और जब तक पहचानता है तब तक बहुत देर हों चुकी होती है ।

इसे पहचाना होगा क्युकी नये साल में नया हम पुराने साल की तरह सो कर नही कर पाएंगे । ठण्ड है कोई बात नही खुद को इससे बचाते हुए आगे तो बढ़ ही सकतें है और हाँ जो भी कर्ण अहै उसे इसी बीच ही करना है । वक़्त कभी हमारे लिए नही ठहरेगा ये बातें हम सभी को पता हैं तो क्या हम वक़्त की रफ्तार को चैलेंज दे प् रहे हैं ? क्यूँ न वक़्त के साथ भी हम नए साल में एक नए तरीके से लडाई लड़ें ? क्यूँ न हर काम में वक़्त से आगे निकलने का प्रयास करें पुराने साल की तरह यह सोचने की अपेक्षा की समय आएगा तो सब हों जायेगा .कठिन है जानता हूँ पर इसी में तो मजा है ।

नए साल में सभी ने कुछ न कुछ शपथ लिया है कुछ ने एक से ज्यादा भी ले रखी होंगी । तो एक और शपथ हों सकता है जो लिया हों उससे मिलता जुलता हों , क्या फर्क पड़ता है एक बार और सही । और यह ये की नए साल में सब कुछ बिलकुल नए तरीके से करेंगे और उस नयापन का जी भरकर लुत्फ़ उठाएंगे ।


और तभी आल इज न्यू होगा ।

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