Monday, January 11, 2010

क्यूँ अक्सर हमारे साथ ऐसा होता है ..........?





कभी कभी हम अनायास ही किसी के बहुत करीब पहुँच जातें हैं .उसकी हर बातें अच्छी लगने लगती है .वो हर पल दिल को भाने लगता है .कोई उसके बारे में कुछ भी गलत बोलने की कोशिश भर करे तो चिढ सी मचने लगती है .रोजाना बस उसी का ख्याल होता है .हर दिन दर्शन हो जाएँ दिल को बस इसी का आस होता है । न मिले ,न दिखे तो बेचैनी सी रहती है दिल में । सारा दिन बोझ सा लगता है । समय काटते नहीं कटते और गुस्सा दूसरों पर उतरता है

कई बार तो हम बहाना खोजते हैं । उससे मिलने के लिए तो कभी बात करने के लिए .कभी उसे छूने के लिए तो कभी कैमरे में कैद करने के लिए.पर जो भी बहाने बनाते हैं वो बड़े इत्मिनान और सोच समझकर बनाते हैं की उसे चोट न पहुंचे ।

इस क्रममें एक छोटी सी गलती अक्सर हमसे हो जाती है। हम यह नही समझने की कोशिश करते की की आखिर सामने वाले के दिल में क्या है, क्या उसे भी बेचैनी होती है ,क्या उसे भी हर पल हमारा ख्याल होता है ?

दरअसल हम प्रेमियों की बिडम्बना ही यही है की कई बार हम जान बुझकर भी बुने भ्रम की स्वप्निल दुनिया में जीना पड़ता है । इस दौरान कई बार हम जगे होतें हैं पर जबरदस्ती आँखे मूंदे होतें है क्यूंकि एक अनचाहा डॉ होता है इस हसीं ख्वाब के बिखरने का ।

पर सच तो सच होता है एक न एक दिन तो उसे सामने आना ही है । और उस पर भी दिल्लगी के सच तो और भी क्रूर होतें हैं जो कई बार इतने भूखे होतें हैं की की बिना वक़्त गवाएं कई कई जिंदगियां लील जातें हैं ।

हालाँकि हम जैसे कुछ लोगों के साथ उस भयावह सच के सामने आने पर भी ऐसा कुछ घटित नही होता क्यूंकि हमे कई बार आगे-पीछे का भी सोचना पडतहै और इस सोचने की क्रम में शुक्र है की हम इसे जिन्दगी में ज्यादा महत्वपूर्ण न मानकर जिस तरह भी हो सके उससे उबरने की कोशिश करते हैं । पर दिल के किसी कोने में एक जख्म तो बन ही जाता है जो गाहे बगाहे पीड़ा पहुंचाते रहता है ।

अक्सर ऐसी बेवफाई के बाद जब हम तन्हाई में होतें हैं तो इशी रिश्ते के बारे में सोचा करतें हैं । इससे जुडी अतीत की यादें सुखद कम दुखद ज्यादा प्रतीत होती है .जैसे जैसे अतीत के पन्ने खुलते जाते हैं वैसे-वैसे हम सच से रूबरू होते जाते हैं । तब हम पातें हैं की दरअसल उस समय जब हम खुश होते थे वह बनावती ख़ुशी थी । उसके प्रति लगाव और उसकी बैटन को बिना प्रतिकार मानते जाना सिर्फ और सिर्फ दैहिक आकर्षण था प्रेम तो वहन था ही नही ।

इस सोचने के क्रम में हम हम कभी खुद को तो कभी सामने वाले को दोषी ठहरातें हैं । उलझने बढती ही रहतीं है । किसी को भी दोषी ठहराएँ दिमागी कसरत तो अपनी ही होती है .फिर इन तन्हाइयों और अतीत की इन यादों से आजिज आकर इससे दूर होने का माध्यम ढूंढते हैं जो कई बार खतरनाक स्टेप होते हैं

हमे अक्सर ऐसा करते समय ये बात याद रखनी चाहिए की की जिस माध्यम को हम इससे दूर होने के लिए अपना रहे है वे कुछ समय मात्र के लिए होता है जबकि यादें और तन्हाईयाँ हमारे साथ तब तक बनी रहती है जब तक की हममे जान रहती है .

Thursday, January 7, 2010

मुझे तो नही लगता ..........






नया साल है मुझे तो नही लगता आखिर इसमें नया क्या है ? सब कुछ तो पुराने साल की ही तरह नजर आ रहा है। सुना है इस साल भी ३६५ दिन ही होंगे.१ घंटे में वही ६० मिनट .१ मिनट में वही ६०सेकेन्द। सुना है इस साल भी रविवार के दिन छुटियाँ रहेंगी। शनिवार रविवार को लोग वीकेंड पर जायेंगे । शुक्रवार को फिल्मे रिलीज होंगी । सरकार भी पुरानी होगी। नेता भी पुराने होंगे उनके वादे भी पुराने होंगे। वही रिश्तेदार वही दोस्त होंगे जो सुख दुःख में वैसे ही बिहैव करेंगे जैसे पुराने वर्ष में करते आयें है।

नया तो कुछ सचमुच नया जैसा होना ही चाहिए। जिसे देखकर या अनुभूति कर ऐसा प्रतीत हों की हाँ ये सचमुच नया है जिसे हम कल तक नही जानते थे। लेकिन नया कुछ बिलकुल नए साल में नही दिख रहा ।

वही कॉलेज ,वही सपने ,वही असयिन्मेंट ,वही टेंशन आखिर कब तक वही यार ..................................

ये साडी चीजें तो वैसे ही है जैसे पुराने साल में थी तो खाक नया साल और इन्हें तो देखो गुब्बारे फोड़ रहे है की नया साल आ गया अरे भैया जरा देखो तो वो गुब्बारा भी पुराने साल का है। गले मिल रहे हैं ,टाफियां खिला रहे हैं सब कुछ पुराना हथकंडा .क्या है यार अगर नया साल है तो नए की तरह करो न ।

सचमुच नया तो तब होता जब हर चीज नए तरीके से हम करना शुरू करते । गले मिलना है नए तरीके से .लोगो से मिलना है तो नए लोगो से मिलेंगे नए साल में उन्हें अपने से जोड़ेंगे। कॉलेज है सब कुछ करेंगे पर नए तरीके से करेंगे ,जो भी करेंगे उसमे नयापन होगा .प्रयोग होगा । दिल से करेंगे अब सब कुछ पुराने साल में दिमाग की करी थी हम सबने।

टेंशन कभी नही । पेंशन तक जीने की इच्छा नही। हसेंगे ओ भी खुलकर क्युकी पुराने साल में रुककर हंसे थे ।

नेता पुराने हैं कोई बात नही पर उनके इरादे ,वादे पुराने नही रहने देंगे । सरकार को नए तरीके से चलने और देश में सार्थक नयापन लाने के लिए जिस स्तर पर हों सकेगा मजबूर करेंगे ।

कुछ नया करना है तो कुछ नया सोचना भी होगा। अरे सोचने से घबराते क्यूँ हों .सोचो खूब सोचो .जहाँ तक सोचते जा सकते हों जाओ बस याद रखना वापिस तुम्हे खुद आना है और अगर वापिस लौटे तो निश्चित ही कुछ नया लेकर लौटोगे और नए साल में कुछ नया करने के लिए हर पल तैयार रहोगे ।

नए साल से याद आया अपनी दिल्ली की सर्दी इस नए साल में चरम पर है ।बाहर कुहरा घना है ,सिहरन पैदा करती हवाएं .शारीर में कम्पन पैदा करती ठण्ड । सब कुछ ऐसा है की रजाई से बहार निकलने की इच्छा नही हों रही । सोने की इच्छा बार बार होगी पर याद रखना है की इस ठण्ड में अगर एक बार नींद लगी और अपनी रजाई जैसे ही गर्मी का एहसास करने लगी तो फिर लाख छह कर भी उसके चरमानन्द से बाहर निकलने की हमारी इच्छा नही होगीऔर यदि उपर से कोई गर्म चाय थमा दे तो फिर पूछना ही क्या / ऐसा लगेगे जन्नत इसी कमरे तक सिमित है। पर याद रखिये यहीं हम हार बैठेंगे । ये जितनी चीजें सुख प्रदान करती है कई बार बहुत खतरनाक होतीं है पर मानव मन की बिडम्बना यह है की वो इसे पहचान ही नही पता और जब तक पहचानता है तब तक बहुत देर हों चुकी होती है ।

इसे पहचाना होगा क्युकी नये साल में नया हम पुराने साल की तरह सो कर नही कर पाएंगे । ठण्ड है कोई बात नही खुद को इससे बचाते हुए आगे तो बढ़ ही सकतें है और हाँ जो भी कर्ण अहै उसे इसी बीच ही करना है । वक़्त कभी हमारे लिए नही ठहरेगा ये बातें हम सभी को पता हैं तो क्या हम वक़्त की रफ्तार को चैलेंज दे प् रहे हैं ? क्यूँ न वक़्त के साथ भी हम नए साल में एक नए तरीके से लडाई लड़ें ? क्यूँ न हर काम में वक़्त से आगे निकलने का प्रयास करें पुराने साल की तरह यह सोचने की अपेक्षा की समय आएगा तो सब हों जायेगा .कठिन है जानता हूँ पर इसी में तो मजा है ।

नए साल में सभी ने कुछ न कुछ शपथ लिया है कुछ ने एक से ज्यादा भी ले रखी होंगी । तो एक और शपथ हों सकता है जो लिया हों उससे मिलता जुलता हों , क्या फर्क पड़ता है एक बार और सही । और यह ये की नए साल में सब कुछ बिलकुल नए तरीके से करेंगे और उस नयापन का जी भरकर लुत्फ़ उठाएंगे ।


और तभी आल इज न्यू होगा ।