सबह के पांच बज चुके हैं। अभी तक सोया नही....एक अजीब सी उलझन है मन में..रह-रह कर मन बेचैन हो रहा है..पूरी रात इसी सोच में गुजरी है की आज क्या फैसला आएगा...फैसले के बाद क्या होगा..कहीं कुछ गलत तो न होगा....रात के २ बजे हैं मै उठ के पानी पिता हूँ और रूम की बत्ती जलाता हूँ......रूम में चारो तरफ उजाला हो गया है पर भीतर मेरे अँधेरे ने घर कर लिया है....उजाले में भी कुछ धुंधलका सा दीखता है.....खुद से ही डरने लगा हूँ..खिड़की से बाहर झांकता हूँ...अजीब अजीब से प्रतिबिम्ब दिखाई देते है...पर्दा गिरा देता हूँ....अभी कुछ देर पहले मै हिम्मत की बात कर रहा था..एक कविता भी लिखी कुछ वैसे ही...पर चंद घंटो बाद ही मै इतना डरपोक हो गया,,,कैसे नही जानता..पर आँखों में फैली दहशत इस बातके इशारे के लिए काफी है की मै बहुत डरा हूँ....अचानक रूम में खडखडाहट होती है....डरता हूँ ....नजर घुमाता हूँ ...दूर उस कोने वो चुहिया फिर आई है...मेरे कल के अख़बार पर बैठ गयी है और कुतरना चालू है....देखता हूँ उसे और बरबस हंस पड़ता हूँ...बेचैनी में हंसी देर तक चेहरे पर नही बनी रहती....चुहिया को रोजाना भगा देता था आज उस पर प्यार आ रहा है या ये कहिये की तरस ...देखता हूँ वह अख़बार पर बने बाबरी ढांचे की तस्वीर को कुतर रही है.....अचानक फिर नजर जाती है बाबरी कुतर चूकि है और दूसरे पेज पर छपा रामजन्मभूमि की तस्वीर दिखने लगती है...मै सोचता हूँ चुहिया क्या फैसला सुना रही है....फिर बेचैन निगाहे खिड़की से बाहर देखती हैं..गली में कुत्तों का शोर आज कुछ ज्यादा है..या हो सकता है की आज मुझे हर कुछ थोडा अलग सा लग रहा हो..खैर अचानक चुहिया पर फिर नजर जाती है राम भी कुतरे जा चुके हैं....................अब वहां सिर्फ एक शुन्य बचा है...किसी का कोई अस्तित्वा नही दिख रहा....अचानक चुहिया ओझल हो गयी है....मेरी चिंता बढ़ गयी है...तो क्या यह है फैसला ...सच राम,अल्लाह के बाद तो एक बड़ा शुन्य नजर आ रहा है...तो क्या ऐसा शुन्य वाकई पैदा होने जा रहा है....दो बजे से अब तक यही सब सोच रहा हूँ...जाने क्या होगा...बाहर देखता हूँ ..एक ख़ूबसूरत उजाला सामने है...चिड़ियाएँ रोजाना की तरह चहचहा रही हैं..अंकल रोजाना की तरह दूध लेने जा रहे हैं...वो छोटी गुडिया दादी के साथ आज भी अपने uसी अंदाज में गुनगुनाते भाग दौड़ कर रही है...मेरे सामने वाली लडकी जिसे रोजाना ८ के बाद देख पता हूँ आज ५ बजे ही देख लिया आज भी वैसे ही खूबसूरत लग रही है और फूल तोड़ रही है शायद वो पूजा भी करती है आज पता चल गया....मेरा अख़बार वाला भी उसी अंदाज में पेपर फेक गया और एक हल्की मुस्कान बिखेर गया....मेरे बाजू में रहने वाली आंटी की झाड़ू की आवाज़ पहले सी ही है.....
कुछ तो नही बदला ...सब कुछ तो पुराने दिनों की तरह है...किसी के दिल मरे कोई दहशत नही है...सभी अपने काम में मशगुल हैं.....माँ का भी फोन आ गया कैसे हो डर तो नही लग रहा ..पता है नही दरोगे अरे तुम मेरे बहादुर बेटे हो...क्या कहता की तेरा ये वीर सपूत पूरी रात चिंता और भी में सोया नही....
सच अब लग रहा है की झूट का डर पाले बैठा था मैं...क्यूंकि बाहर तो ऐसा कुछ भी नही,,,...
आज ऑफिस भी तो जाना है...माहौल भी मस्त है..कुछ समय भी अपने पास है तो क्यूँ न कुछ देर मै भी सो लूँ,,,,चलिए अगर आप लोग सो लिए हैं तो निकलिए सडकों पर रोजाना की तरह एक बेहतर दिन आपके स्वागत में खड़ा है,,,,यूँ ही प्यार बांटते रहिये.....अमन बांटते रहिये,,,,,